सूर्य के रंगहीन प्रकाश को यदि किसी प्रिज्म में से गुजारा जाए तो यह सात रंगों में विभाजित हो जाता है, ये सात रंग हैं- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, नारंगी और लाल. सात रंगों की इस पट्टी को वर्णक्रम या स्पैक्ट्रम कहते हैं. प्रकाश की ये किरणें तरंगों के रूप में यात्रा करती हैं. इन तरंगों को विद्युत-चुंबकीय तरंगें कहते हैं. ये तरंगें कंपनों के फलस्वरूप पैदा होती हैं. प्रत्येक रंग की अलग- अलग आवृत्ति (Frequency) होती है. आवृत्ति को हर्ट्ज (Hertz) इकाई में मापा जाता है. यदि कोई वस्तु एक सेकेंड में एक कंपन करती है, तो उसकी आवृत्ति एक होगी. इन सात रंगों में बैंगनी रंग की आवृत्ति सबसे अधिक और लाल रंग की आवृत्ति सबसे कम होती है. इसी बात को हम दूसरे ढंग से भी कह सकते हैं कि बैंगनी रंग की तरंगदैर्ध्य (Wavelength) सबसे कम और लाल रंग की सबसे अधिक होती है. इन सात रंगों के प्रति हमारी आंखें संवेदनशील होती हैं, इसलिए विद्युत-चुंबकीय वर्णक्रम के ये सातों रंग हमें दिखाई देते हैं.
इनके अतिरिक्त कुछ विद्युत चुंबकीय तरंगें ऐसी भी हैं जो हमारी आंखों को दिखाई नहीं देती. लाल रंग से कम और बैंगनी रंग से अधिक आवृत्ति की तरंगें हमें दिखाई नहीं देतीं.
लाल रंग से कम आवृत्ति की तरंगों को अवरक्त किरणें (Infrared Rays) कहते हैं. अवरक्त किरणों से कम आवृत्ति वाली तरंगों को सूक्ष्म-तरंगें (Micro- Waves) और उनसे भी कम आवृत्ति वाली तरंगों को रेडियो तरंगों के नाम से पुकारा जाता है.
बैंगनी रंग से अधिक आवृत्ति या कम तरंगदैर्ध्य वाली तरंगों को पराबैंगनी तरंगें कहते हैं. पराबैंगनी तरंगों से भी अधिक आवृत्ति की तरंगों को क्रमशः एक्स किरणों और गामा किरणों के नाम से पुकारा जाता है.
पराबैंगनी किरणों में बहुत अधिक ऊर्जा निहित होती है. इन किरणों की अधिक मात्रा से शरीर की त्वचा झुलस जाती है. इतना ही नहीं, इनसे त्वचा का कैंसर भी हो सकता है. सूर्य के प्रकश में इन किरणों की बहुत अधिक मात्रा होती है, लेकिन वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में उपस्थित ओजोन गैस इन्हें अवशोषित कर लेती है, जिससे धरती तक इनकी बहुत ही कम मात्रा आ पाती है. यदि सूर्य से आने वाली समस्त पराबैंगनी किरणें धरती तक आतीं, तो जीवन संभव न हो पाता. कम मात्रा में इन किरणों के कुछ लाभ भी हैं. इनसे कुछ बैक्टीरिया मर जाते हैं. इन्हीं के द्वारा त्वचा में उपस्थित पदार्थ विटामिन ‘डी’ में बदल जाते हैं. पराबैंगनी किरणें आंखों के लिए बहुत ही घातक हैं. इनके आंखों पर सीधे पड़ने से आंखों पर सूजन आ जाती है हो जाता तथा पानी बहने लगता है. इन किरणों के प्रभाव से बचने के लिए रंगीन कांच का चश्मा लगाना जरूरी है.
जब ये किरणें कुछ पदार्थों पर पड़ती हैं, तो फ्लोरोसेंस द्वारा प्रकाश पैदा करती हैं.