आम अनुभव की बात है कि जब हम किसी भवन यकी तीसरी या चौथी मंजिल तक सीढ़ियों द्वारा चढ़कर जाते हैं, तो सांस फूलने लगती है, लेकिन उतरते समय ऐसा नहीं होता. किसी भारी वस्तु को उठाकर ऊपर रखने में हमें जोर लगाना पड़ता है, इसी प्रकार जब हम किसी पहाड़ पर चढ़ते हैं, तो जल्दी ही हमारी सांस फूल जाती है, लेकिन पहाड़ से उतरते समय ऐसा नहीं होता. क्या आप जानते हो कि ऐसा क्यों होता है?
हम जानते हैं कि हमारी धरती अपने गुरुत्व बल के द्वारा प्रत्येक वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है. धरती की सतह से ऊपर जाने में इस गुरुत्व बल की विपरीत दिशा में काम करना पड़ता है, लेकिन ऊपर से नीचे की ओर आने में धरती का गुरुत्व बल हमें अपनी ओर खींचता है. गुरुत्व बल के विपरीत काम करने के कारण ही किसी चढ़ाई पर चढ़ना कठिन होता है, लेकिन उतरना आसान होता है.
जब हम किसी पहाड़ पर चढ़ते हैं, तो हमारी मांसपेशियों को शरीर का वजन उठाने के लिए अतिरिक्त काम करना पड़ता है. यह अतिरिक्त काम शरीर के भार और ऊंचाई के गुणनफल के बराबर होता है. जितनी ऊंचाई ज्यादा होती है, मांसपेशियों को उतना ही अधिक कार्य करना पड़ता है. इसके लिए हृदय को अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है और फेफड़ों को अधिक कार्बन डाइआक्साइड निकालनी पड़ती है. परिणाम यह होता है कि हृदय तेप्ती से धड़कने लगता है और सांस भी जल्दी- जल्दी चलने लगती है.
चढ़ाई का ढाल जितना अधिक होगा काम उतनी ही तेजी से करना पड़ेगा. इसीलिए सीधी चढ़ाई में हम कम ढाल वाली चढ़ाई की अपेक्षा जल्दी थक जाते हैं.
यदि हम एक ही ऊंचाई पर दो अलग-अलग रास्तों से चढ़ते हैं, जिनमें एक सीधी चढ़ाई वाला है और दूसरा कम ढाल का, तो कार्य करने की मात्रा दोनों ही दिशाओं में बराबर होगी. लेकिन सीधे ढाल में काम अधिक तेजी से करने के कारण थकान जल्दी होगी।
जब हम पहाड़ी से नीचे उतरते हैं, तो पृथ्वी का गुरुत्व बल हमें नीचे की ओर खींचता है, जिससे हमारी मांसपेशियों को अधिक काम नहीं करना पड़ता. यही कारण है कि पहाड़ से उतरते समय हमें उतनी थकान नहीं होती, जितनी कि चढ़ते समय होती हैं.