प्राचीन काल से ही मनुष्य समुद्र की तलहटी के विषय में जानने सेका इच्छुक रहा है. हजारों साल तक वह थोड़े समय के लिए गोता लगाकर यह जानने का प्रयत्न करता रहा कि समुद्रों, झीलों और नदियों की तलहटी कैसी है और वहां क्या मिलता है? इन गहराइयों में वह अधिक देर तक नहीं रुक पाता था, क्योंकि उसके पास पानी के अंदर सांस लेने का कोई साधन नहीं था. लेकिन आज ऐसे तरीके विकसित कर लिए गए हैं, जिनको प्रयोग में लाकर वह पानी के अंदर सांस ले सकता है और अधिक देर तक ठहर कर समुद्र तल के रहस्यों का पता लगा सकता है.
गोताखोरों के लिए आधुनिक ढंग की पोशाक का निर्माण सर्वप्रथम सन् 1819 में जर्मनी के ऑगस्टस सीबे (Augustus Siebe) नामक वैज्ञानिक ने किया था. इस पोशाक में धातु से बना एक हैल्मेट, जिसमें कंधों तक आने वाली प्लेट लगी थी. इसको चमड़े की जैकिट से जोड़ दिया जाता था. जैकिट में पानी प्रवेश नहीं कर सकता था. हैल्मेट (Helmet) से एक नली लगी होती थी, जो पानी की सतह से ऊपर रहती थी. इसी के द्वारा गोताखोर सांस लेने का काम करता था. इस पोशाक का प्रयोग गोताखोरों ने समुद्र की गहराइयों में उतरने के लिए किया. सन् 1830 में उन्होंने इस पोशाक में कुछ परिवर्तन किए, तब से अब तक गोताखोरों की पोशाक में और भी अनेक परिवर्तन किए गए हैं, लेकिन आज की सभी पोशाकों में सीवे का मूल सिद्धांत ही प्रयोग में लाया जाता है.
समुद्र की गहराई में उतरने वाले गोताखोरों को निम्नलिखित सात उपकरण प्रयोग में लाने होते हैं:
1. गोताखोर के साथ एक पंप होता है, जो उसके नीचे की और हवा को धकेलता है.
2. स्टील का बना हैल्मेट होता है, जिसमें सख्त कांच से बनी एक छोटी सी खिड़की आंखों के सामने होती है, जिससे वह देख सकता है.
3. एक विशेष प्रकार की चुस्त पोशाक होती है, जिसमें पानी प्रवेश नहीं करता. यह टखनों और कलाइयों को इलास्टिक द्वारा जकड़े रहती है.
4. एक सख्त नली होती है, जो सांस लेने के काम आती है.
5. विशेष प्रकार के जूते होते हैं, जिन्हें पहनकर वह समुद्रतल में करता है.
6. सीसा धातु के बने भार होते हैं, जो उसकी छाती और कमर पर सूट में लगे हुकों से लटके रहते हैं. ये भार उसे ऊपर आने से रोकते हैं.
7. एक ऐसा टेलीफोन, जिसके द्वारा वह पानी से बाहर संदेश भेज सकता है.
समुद्री गोताखोरों के लिए पानी का दबाव एक बहुत बड़ी समस्या होती है. जैसे-जैसे गोताखोर नीचे जाता है. वैसे ही वैसे पानी का दबाव बढ़ता जाता है. पंप द्वारा नोचे की दिशा में फेंकी जाने वाली हवा इतनी अधिक होनी चाहिए, जिससे वह जल-दबाव के विरुद्ध अपने को संतुलित कर सके और सुविधापूर्वक सांस ले सके.
पानी की अत्यधिक गहराइयों में काम करने वाले गोताखोर चमड़े से बनी लचीली पोशाकों का प्रयोग नहीं करते, बल्कि ये सूट धातु से बने होते हैं. इन सूटों को तारों की केबल द्वारा नीचे भेजा और ऊपर लाया जाता है.
पुराने समय में समुद्री गोताखोर नाइट्रोजन युक्त साधारण वायु सांस लेने के लिए प्रयोग करते थे. यह काफी हानिकारक थी. समुद्र की गहराइयों में दाब काफी अधिक होता है इस कारण वायु की नाइट्रोजन रक्त में अवशोषित हो जाती है. जब गोताखोर ऊपर आता था तो सामान्य दाब के कारण रक्त में नाइट्रोजन के बुलबुले बन जाते थे. इन बुलबुलों से शरीर में तेज दर्द होता था. कभी-कभी तो गोताखोर की मृत्यु भी हो जाती थी. इससे छुटकारा पाने के लिए आजकल गोताखोरों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन और हीलियम का मिश्रण दिया जाता है. हीलियम रक्त में नहीं घुलती इसलिए इसमें सांस लेना अधिक सुरक्षित है. साथ ही साथ इसमें सांस लेने से गोताखोर अधिक तेजी से बात कर सकता है क्योंकि ध्वनि-इस गैस में हवा की तुलना में तीन गुना अधिक वेग से चलती है.
गोताखोर समुद्र की गहराइयों में उतरकर बहुत से महत्वपूर्ण काम करते हैं. इसके द्वारा ही नदियों और झीलों पर पुल बनाने का कार्य संपन्न किया जाता है. ये लोग सागरों के तल में उपस्थित पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं का अध्ययन कर हमारा ज्ञान बढ़ाते हैं. आजकल तो गोताखोरी को खेलों के रूप में भी मान्यता प्राप्त हो गई है.