समुद्र की गहराइयों को छोड़कर कीड़े लगभग दुनिया में हर जगह पाए जाते हैं. जीवाश्मों के अध्ययनों से पता चलता है कि कीड़ों का जन्म धरती पर आज से लगभग 40 करोड़ वर्ष पहले हुआ था. तब से ये बराबर मौसम और वातावरण के परिवर्तनों के अनुरूप बेहद शीघ्रता और सफाई से अपने आपको ढालते रहे हैं.
सरसरी निगाह से देखने पर यह विश्वास नहीं होता कि इनके छोटे से शरीर में रक्त संचार प्रणाली और खून भी सकता है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि कोड़ों के शरीर में खून और दिल ही नहीं होता, बल्कि अन्य सभी आवश्यक अंग भी होते हैं.
किसी भी कीड़े का शरीर 3 भागों में बंटा होता है: सिर, छाती और पेट. सिर में ऐंटेना (Antennae) का एक जोड़ा होता है, जो स्पर्श, स्वाद और गंध के प्रति संवेदनशील होता है. इसके दो संयुक्त नेत्र होते हैं, जो दृष्टि को संतुलन देते हैं. इनके अतिरिक्त दो तीन और सादी आंखें (Ocelli) होती हैं, जो प्रकाश या अंधेरे का पता लगाती हैं. मुंह में काटने या चबाने के लिए जबड़ा होता है, या पिन की तरह का चुभाकर अपना भोजन चूसने का यंत्र होता है. इसके सिर में मस्तिष्क होता है, जिसका पूरे शरीर में फैली तंत्रिकाओं से संबंध होता है.
छाती या शरीर के मध्य भाग में मुड़ने वाले पैरों के तीन जोड़े होते हैं. इन पैरों में चिपचिपी गद्दियां या पंजे लगे होते हैं. कीड़ा एकमात्र ऐसा बिना रीढ़ का जंतु है, जिसके पंख होते हैं. अधिकांश कीड़ों के दो जोड़े पंख होते हैं, पर कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनके पंखों का केवल एक ही जोड़ा होता है, या पंख बिल्कुल ही नहीं होते.
कीड़े के पेट में पूरा पाचन और प्रजनन-तंत्र होता है. पेट के नीचे कुछ बारीक छिद्र होते हैं, जो स्पिराकल (Spiracles) कहलाते हैं. इनसे कीड़ा सांस लेता है. इनका संबंध ट्रेकिया से होता है. इनसे जाने वाली आक्सीजन (Oxygen) बड़ी ही धीमी गति से ट्रेकिया में होती हुई रक्त में मिल जाती है. आक्सीजन का धीमी गति से जाना ही शायद इस बात का प्रमाण है कि कीड़ों का आकार विकास के क्रम में इतना छोटा रह गया है. रक्त संचार प्रणाली इस प्रकार की है, कि रक्त हृदय में छोटे-छोटे छिद्रों के माध्यम से जिन पर वाल्व लगे होते हैं. पहुंचता है. जब हृदय सिकुड़ता है, तो रक्त बहकर नसों में जाता है. कीड़ों के शरीर में धमनियां नहीं होतीं.
इसके पेट में मैलपिगीय (Malpighian) नलिकाएं भी होती हैं, जिनके द्वारा रक्त से निकले वर्जित पदार्थ बाहर फेंक दिए जाते हैं. इसीलिए कीड़े दीर्घकाल तक जीवित रहते हैं.
मादा कीड़े के शरीर में अंडा देने की एक नली भी होती है, जिसे ओविपोजिटर (Ovipositor) कहते हैं. कीड़े के शरीर पर एक कड़ा ढांचा चढ़ा होता है, जो उसे नाहरी चोट से बचाता है और शरीर की नमी को बाहर जाने से रोकता है. पूरे शरीर में असंख्य महीन रोएं भी होते हैं. ये रोएं तंत्रिकाओं से जुड़े होते हैं और अत्यंत संवेदनशील होते हैं. इसीलिए कीड़ा हल्की से हल्की हवा या किसी भी तरह की गतिविधि को तत्काल महसूस कर लेता है.
बहुत से कीड़ों के शरीर में एक विशेष श्रवण- यंत्र होता है, जो पेट, छाती या पैरों पर लगा होता है. इनमें से कुछ अंग तो केवल खाली स्थान के रूप में होते हैं, जिन पर एक बारीक झिल्ली चढ़ी होती है, जो किसी भी हरकत पर तत्काल कंपन करने लगती है.