शरीर के अंगों का वह समूह जो रक्त-संचार को व्यवस्थित करता है, रक्त संचार संस्थान कहलाता है. शरीर के प्रत्येक हिस्से तक भोजन और आक्सीजन पहुंचाने और फालतू पदार्थों को हटाने के लिए रक्त का पहुंचना बहुत आवश्यक है. मनुष्य में रक्त-संचार- व्यवस्था के संचालन के लिए मांसपेशी से बना एक पंप होता है, जिसे हृदय कहते हैं. यह कुछ नलिकाओं द्वारा समस्त शरीर में रक्त पहुंचाता है. ये नलिकाएं शरीर के प्रत्येक कोष्ठक तक रक्त को पहुंचा देती हैं.
रक्त-संचार प्रणाली में पांच प्रकार की नलिकाएं होती हैं. धमनी (Artery), धमनिका (Areterioles), केशिका (Capillary), शिरा (Venule) और महाशिरा (Vena cava). धमनी एक बड़ी नलिका होती है, जो रक्त को हृदय (Heart) से शरीर-कोष्ठकों की ओर लाती है. इसमें से छोटी धमनिकाएं फूटती हैं, जो आगे चलकर और भी पतली केशिकाओं में बंट जाती हैं. ये ही केशिकाएं रक्त को कोष्ठकों तक पहुंचाती हैं. ये सब फिर मुड़ जाती हैं और एक शिरा का रूप ले लेती हैं. और ये शिराएं जुड़ कर एक बड़ी नलिका बन जाती हैं, जिसे महाशिरा कहते हैं. महाशिरा रक्त को वापस हृदय तक पहुंचाती है. मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि यदि रक्तवाहक सभी नलिकाओं को एक लंबी लाइन में जोड़ दिया जाए तो ये लगभग 60,000 मील लंबी हो जाएंगी.
यह रक्त हृदय के दायें निलय (Ventricle) से फेफड़े की धमनी में पंप किया जाता है. यह धमनी इस रक्त को फेफड़े में ले जाती है, जहां यह आक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाइआक्साइड छोड़ता है. हृदय का बायां कर्णपल्लव (Auricle) इस साफ किए रक्त को बाएं निलय में पहुंचा देता है, जहां से यह महाधमनी (Arota) में जाता है. यह शरीर की सबसे बड़ी धमनी है. इसी में रक्त धमनियों और धमनिकाओं में पहुंचता है.
रक्त जब छोटी आंतों के पास से गुजरता है, तो भोजन ग्रहण करता है. इसमें फालतू पदार्थ गुर्दे (Kidney) के पास से गुजरते हुए दूर किए जाते हैं. शरीर-कोष्ठकों को भोजन और आक्सीजन देकर तथा फालतू पदार्थ लेकर रक्त महाशिरा (Vena cava) द्वारा हृदय में वापस चला जाता है. महाशिरा शरीर को सबसे बड़ी शिरा है. गंदा खून दायें कर्ण पल्लव में जाता है और साफ होकर बाएं निलय में आ जाता है. और इस तरह की रक्त की दूसरी यात्रा आरंभ हो जाती है.
धमनियां जिन पेशियों से बनी होती हैं, वे मोटी और लचीली होती हैं. इनमें से ही चमकीले लाल रंग का अति आक्सीजन युक्त रक्त बहता है. जैसे ही हृदय धड़कता है, वैसे ही इसका दाब पूरी प्रणाली में पहुंचता है, जो नब्ज के रूप में महसूस किया जा सकता है. धमनियों की दीवारें सिकुड़ और फैल सकती हैं, जिससे कि धमनिकाओं में जाने वाले रक्त की मात्रा को कम-ज्यादा किया जा सकता है,
शिराओं की दीवारों में तीन पर्तें होती हैं: लचीली, पेशीयुक्त तथा डोरियों वाली. शिराएं धमनियों से पतली और कम मांसल होती हैं. बाहों और टांगों में शिराओं में जगह-जगह वाल्व लगे होते हैं. जिससे कि रक्त गुरुत्वाकर्षण के कारण उल्टा बहकर कहीं इकट्ठा न हो जाए. वे शिराएं जो मोटी, फैली और कुंडली जैसी होती हैं, उन्हें अवस्फीत (Varicose) शिराएं कहते हैं. इस तरह की शिराएं बूढ़े लोगों की टांगों में होती हैं या उनकी टांगों में होती हैं, जिन्हें पैदल बहुत चलना पड़ता है. शिराओं में खून का दाब कम होता है और यह धीरे-धीरे बहता है. इस रक्त में आक्सीजन कम होती है, इसलिए इसका रंग भी हल्का बैंगनी हो जाता है.