संगीत गीत मानव मात्र की एक प्रमुख अभिव्यक्ति है. यह दो प्रकार का होता है: गले से गाया जाने वाला संगीत तथा यंत्रों द्वारा बजाया जाने वाला संगीत, गले से गाया जाने वाला संगीत आवाज की मधुरता पर निर्भर करता है. वाद्य यंत्रों द्वारा बजाया जाने वाला संगीत यंत्र पर निर्भर करता है. आजकल नाच को भी कुछ लोग संगीत की श्रेणी से लेने लगे हैं.
विभिन्न संगीत-यंत्र के प्रकार
वाद्य-यंत्र वह यंत्र है, जो संगीतमय ध्वनि पैदा करता है. हमारी आवाज एक प्रकृति-प्रदत्त संगीत-यंत्र है. सभी संगीत-यंत्र हमारी आवाज के संपूरक यंत्र हैं. इन यंत्रों को हम 6 वर्गों में बांट सकते हैं:
1. फूंक मारकर बजने वाले यंत्र
बांसुरी, क्लैरियोनेट, पिकोला, सैक्सोफोन फूंक मारकर बजने वाले यंत्रों के वर्ग में आते हैं. इन यंत्रों में वायु कालम की लंबाई कम या ज्यादा करने के लिए छंद होते हैं, जिन्हें उंगली से दबाया या खोला जाता है. बांसुरी और पिकोलो में एक सिरे पर बने छेद से मुंह द्वारा हवा भेजकर ध्वनि पैदा की जाती है. यह ध्वनि वायु के कंपन से पैदा होती है. छेदों के नियंत्रण द्वारा सुरों को नियंत्रित किया जाता है. दूसरे यंत्रों में रीड होती है. इन्हें होंठों के बीच दवाकर और फूंक मारकर ध्वनि पैदा की जाती है.
2. पीतल के यंत्र
हॉर्न, कौरनेट, सैक्सहॉर्न, युफोनियम आदि इस वर्ग के संगीत-यंत्र हैं. इनमें प्याले के आकार का माउथपीस होता है. एक बेलनाकार नली, वाल्व और घंटी होती है. बजाने वाला मुंह से फूंक मारता है. उसके होंठ माठथपीस के पास कंपन करते हैं. नली की लंबाई के अनुसार इन कंपनों से विभिन्न प्रकार की ध्वनियां पैदा होती हैं. ध्वनि का पैदा होना होठों के तनाव पर भी निर्भर करता है. अब पीतल के अलावा अन्य वस्तुओं से भी ये यंत्र बनने लगे हैं.
3. पीटकर बजने वाले यंत्र
ढोलक, तबला, बड़े ढोल सभी इस वर्ग के अंतर्गत आते हैं. इसमें हथेली द्वारा पीटकर आवाज पैदा की जाती है. इन यंत्रों में दो प्रकार की ध्वनियां पैदा होती हैं. खाल को तनाव देकर किसी गुहिका पर मढ़ दिया जाता है. गुहिका में होने वाले कंपनों के अनुसार ही ध्वनि पैदा होती है. कुछ यंत्रों में छड़ या प्लेटें भी इस्तेमाल होती हैं.
4. तार वाले यंत्र
गिटार, हार्प, वायलिन, वायोला आदि सभी तार वाले यंत्र हैं. गिटार और हार्प में तारों को प्लक करके ध्वनियां पैदा की जाती हैं. वायलिन और वायोला में बोइंग करके ध्वनियां पैदा की जाती हैं. इन यंत्रों में ध्वनि की आवृत्ति तार की लंबाई तनाव और प्रति मीटर लंबाई के द्रव्यमान पर निर्भर करती है.
5. की-बोर्डयंत्र
सेलेस्टा, पाइपऑर्गन, एकोर्डियन, पियानो, हारमोनियम आदि इस श्रेणी के यंत्र हैं. इन यंत्रों में लगी छड़ें, नलियर्या, रोड या तार, की-बोर्ड की किसी भी की (Key) को दबाकर आवाज पैदा करती हैं. सेलेस्टा और पियानो को पीटकर बजने वाले यंत्रों के वर्ग में रखा जा सकता है, क्योंकि इनमें लगी छड़ें की-बोर्ड (Key- board) के दबाने से इन पर हथौड़ी जैसी चोट से ही ध्वनि पैदा होती है. पाइप ऑर्गन तथा एकोर्डियन फूंक मारकर बजने वाले यंत्रों की तरह हैं. इनमें जो आवाज पैदा होती है, वह हवा द्वारा ही होती है. हां, इतना जरूर है कि हवा मुंह से नहीं फूंकी जाती है. यह की-बोर्ड के दबाने से जाती है.
6. विद्युत और इलेक्ट्रोनिक यंत्र
ऊपर लिखे सभी यंत्रों में अब माइक्रोफोन, एंप्लीफायर तथा लाउडस्पीकर आदि लगाने की सुविधाएं पैदा कर ली गई हैं. इनमें होने वाले कंपनों को विद्युत धारा में बदला जा सकता है. इलेक्ट्रिक गिटार और पियानो ऐसे ही यंत्र हैं. रीड, छड़ और नलियों से पैदा होने वाली ध्वनियों को विद्युत धारा में बदलकर तेज आवाज पैदा की जा सकती है. ये सभी यंत्र विद्युत वाद्य यंत्र कहलाते हैं. विद्युत और चुंबकीय गुणों को टेप, इलेक्ट्रोनिक परिपथों में संगीत पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें हम इलेक्ट्रोनिक वाद्य-यंत्र कहते हैं.
पिछले 45 वर्षों में कंप्यूटर नियंत्रित इलेक्ट्रोनिक वाद्य यंत्रों के विकास में बहुत अधिक उन्नति हुई है. इन सभी में कंप्यूटर ही संगीत का प्रारूप तैयार करते हैं