मुख्यमंत्री की शपथ के बारह दिन बाद मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन हो गया। केंद्र में मंत्री पद छोडक़र आए प्रहलाद पटेल, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और सांसद राव उदयप्रताप सिंह ने भी मंत्री पद की शपथ ले ली है। प्रदेश में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब एक साथ इतने दिग्गज नेता सरकार का चेहरा बन रहे हैं और पार्टी हाईकमान नई पीढ़ी को भी आगे करने की रिस्क उठा रहा है।
मंत्रिमंडल पर गौर करें तो इस विशाल प्रदेश के सभी अंचलों का बराबर ध्यान रखने का प्रयास किया गया है। लेकिन संघ की प्रयोगशाला कहा जाने वाला मालवा-निमाड़ सब पर भारी है। यहां से न केवल मुख्यमंत्री और एक उप मुख्यमंत्री हैं, अपितु अलावा सात मंत्री भी सरकार में शामिल हो गए हैं। मध्यभारत को इस बार छह मंत्री मिले हैं जबकि पिछली बार पांच ही थे। बघेलखंड न नुकसान में रहा, न फायदे में। पिछली बार चार मंत्री थे, इस बार भी चार को ही मौका मिला है- उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल, राधा सिंह, प्रतिमा बागरी और दिलीप जायसवाल। महाकौशल को जरूर इस बार फायदा हुआ है। शिवराज सरकार में एक ही मंत्री थे राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार रामकिशोर कांवरे। इस बार प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, संपतिया उइके और राव उदय प्रताप सिंह केबिनेट का हिस्सा हैं। बुंदेलखंड से गोविंद सिंह राजपूत, लखन पटेल, दिलीप अहिरवार और धर्मेंद्र लोधी को मंत्री बनाया गया है।
असल में भाजपा ने बड़ा प्रयोग करते हुए प्रदेश में तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को मैदान में उतारा था। इसके अलावा पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी चुनाव लड़ा था। केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और सतना सांसद गणेश सिंह को छोडक़र बाकी सभी चुनाव जीत गए। इसमें प्रहलाद पटेल और कैलाश को तो मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन 11 दिसंबर को सीएम के तौर पर मोहन यादव के नाम का ऐलान होते ही दिग्गज नेताओं के भविष्य को लेकर अटकलें शुरू हो गई थीं। 25 दिसंबर को जब प्रहलाद, कैलाश, राकेश और राव उदय प्रताप सिंह ने कैबिनेट मंत्री की शपथ ली तो ये साफ हो गया कि नई सरकार में मोहन यादव के अलावा ये दिग्गज भी कहीं न कहीं पावर सेंटर बनेंगे।
शिवराज सरकार में मंत्री रहे उन्नीस लोग इस बार विधानसभा चुनाव जीतने में सफल हुए। इनमें मोहन यादव, जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ल भी शामिल हैं। यादव मुख्यमंत्री बन गए हैं। देवड़ा व शुक्ल उप मुख्यमंत्री। बाकी 16 में से 6 को ही कैबिनेट में जगह मिली। 10 मंत्री पद की शपथ के लिए कॉल का इंतजार ही करते रह गए। जो वंचित रह गए, उनमें से अधिकांश चुनावी राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं। इनमें एक भी ऐसा नहीं है जो कम से कम चार चुनाव नहीं जीता हो।
इसका अर्थ यह भी निकाला जा रहा है कि वरिष्ठता अब पद की गारंटी नहीं रह गई है। नए को मौका देने के लिए पुरानों को पीछे हटना पड़ेगा या उन्हें पीछे हटा दिया जाएगा। मंदसौर जिले के जावद से विधायक ओमप्रकाश सकलेचा पिछली शिवराज सरकार में पहली बार मंत्री बने। वे पूर्व मुख्यमंत्री स्व.वीरेंद्र कुमार सकलेचा के पुत्र हैं। उनके पास सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग था, लेकिन उनका विभाग गुमनाम सा ही रहा। उनकी उपलब्धियां कहीं दिखाई नहीं दीं, जबकि आज के दौर में यह विभाग काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी तरह नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा व पर्यावरण मंत्री हरदीप सिंह डंग भी कुछ नया नहीं कर पाये, जबकि सोलर एनर्जी के क्षेत्र में इस समय काफी स्कोप है। ये दोनों केबिनेट में अपनी जगह नहीं बना सके।
शिवराज सरकार में आदिवासी महिला चेहरा मीना सिंह भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते मंत्री नहीं बन पाईं, ऐसी पार्टी में चर्चा है। उनके खिलाफ आंदोलन हुआ, झड़प ऐसी हुई कि 21 पुलिसकर्मी घायल हो गए। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोडऩे वाले बिसाहूलाल हालांकि सिंधिया समर्थक नहीं थे, आदिवासी कोटे से आते हैं। लेकिन चूंकि महिलाओं के बारे में उनकी आपत्तिजनक टिप्पणियों से पार्टी को बैकफुट पर आना पड़ा था, माना जा रहा है कि इसीलिए उन्हें बाहर रहना पड़ा।
इस केबिनेट की खास बात यह भी है कि पार्टी नेतृत्व ने संदेश दे दिया कि पहली बार के विधायक मंत्री बन सकते हैं। छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल के गठन में दिए गए संदेश के बाद मप्र के पहली बार के विधायकों में भी उम्मीद जग गई थी। सस्पेंस सिर्फ इस बात का था कि किसकी किस्मत खुलेगी? नई-नई विधायक बनी राधा सिंह, संपतिया उइके और प्रतिमा बागरी, नरेंद्र शिवाजी पटेल और दिलीप अहिरवार मंत्री बन गए। 35 साल की प्रतिमा सबसे कम उम्र की मंत्री हैं। इनके चयन में जातिगत समीकरण के साथ ही पर्सनल प्रोफाइल भी देखी गई है। पांच में दो पोस्ट ग्रेजुएट, एक ग्रेजुएट और एक इंजीनियर है। संदेश साफ है नए को मौका मिलेगा, लेकिन योग्यता भी देंखेगे। महिलाओं की बात करें तो इस बार पांच महिलाओं को मंत्री बनाया है। दो उपमुख्यमंत्री समेत 30 मंत्री हैं। इस हिसाब से कैबिनेट में महिलाओं की हिस्सेदारी 17 फीसदी है। शिवराज सरकार में तीन महिला मंत्री थीं, जबकि 33 मंत्री थे। यानी कुल नौ प्रतिशत ही हिस्सेदारी थी।
मंत्रिमंडल को लेकर इस फॉर्मूले पर भी चर्चा हो रही थी कि लोकसभा की सीटों के हिसाब से मंत्री बनाए जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ दिखा नहीं। मुख्यमंत्री, दो उपमुख्यमंत्री के साथ ही नए 28 मंत्री जिन विधानसभा क्षेत्रों से आते हैं, उनसे 22 लोकसभा सीटें ही कवर हो रही हैं। यानि सात लोकसभा सीटों से प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। रतलाम तथा होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र से तीन-तीन मंत्री बनाए गए हैं। ग्वालियर, दमोह, राजगढ़ व इंदौर संसदीय क्षेत्र से दो-दो मंत्री बनाए हैं, जाहिर है कहीं न कहीं लोकसभा सीटों का फॉर्मूला लागू नहीं हो पाया। या ये कहें कि यह फार्मूला रणनीति में शामिल ही नहीं रहा, केवल चर्चाओं में ही इसका जिक्र हुआ। असल रणनीति तो यही समझ आती है कि पांच विधानसभाओं की तर्ज पर लोकसभा में केवल एक चेहरा होगा, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फिलहाल, मध्यप्रदेश की केबिनेट को जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन की दृष्टि से फिट माना जा रहा है।
-संजय सक्सेना