इंदौर। पापा कहते थे बेटा, अच्छे दिन आने ही वाले हैं..।
हमारे पैसे खाते में अब आ जाएंगे। बीमारियों के कारण
जो साढ़े 3 लाख का कर्जा है, सबसे पहले उसी को
उतारूंगा। छोटा सा मकान खरीद लेंगे, लेकिन रुपए
तो नहीं आए, मौत उससे पहले आ गई। पापा ही हमारे
लिए सब कुछ थे। अभी तो हमारे उनके नुक्ते (दिवंगत के
कर्मकांड) के लिए भी रुपए नहीं है।’
यह कहते-कहते हुकुमचंद मिल इंदौर के मजदूर जगदीश सिंह जादौन (88) की बेटी मनीषा फफक कर रो पड़ीं। वे कहती हैं कि पापा का निधन 17 जनवरी को हो गया। वे मिल का बकाया रुपया पाने के लिए 32 साल से लड़ाई लड़ रहे थे। वे उन पात्र मजदूरों में थे जिन्हें उनकी बकाया राशि मिलना है। वे हर हफ्ते मजदूर यूनियन की मीटिंग में जाते थे।
हुकुमचंद मिल के मजदूर जगदीश सिंह जादौन की बेटी मनीषा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पहले कार्यक्रम में मजदूरों के बकाया रुपए जमा कराए जाने की घोषणा की तो वे बहुत खुश हो गए थे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को 224 करोड़ का प्रतीकात्मक चेक सौंपते फोटो देखा तो लगा कि अब हमारी आस पूरी हो गई। पर हमें क्या पता था कि वे जीते जी न उस रकम को खाते में देख पाएंगे, न कर्ज उतरेगा, न कोई मकान खरीदेंगे।
दो बार अटैक आ चुका था, अन्य बीमारियों के कारण कर्ज बढ़ता गया
आठ सालों में दो बार अटैक आया। किडनी में भी दिक्कत हो गई। अस्थमा काफी पहले से था। इलाज के लिए रुपए नहीं थे। उधार लेते रहे तो कर्ज 3.5 लाख रुपए से ज्यादा का गया। कोरोना के बाद हालत और बिगड़ते गई। 88 साल की उम्र में वे लगभग बिस्तर पर ही थे।
2 हजार से ज्यादा मजदूरों का हो चुका है निधन
मामले में 3 हजार मजदूरों को भुगतान किया जाना है। इसमें से 287 वे मजदूर हैं जिनका निधन हो चुका है। यह राशि उनकी पत्नी के खाते में जमा की जाएगी। ऐसे ही 484 परिवार ऐसे हैं जिनमें माता-पिता दोनों की मौत हो चुकी है। ऐसे में यह राशि उनके परिजन को मिलेगी।
जहां तक स्व. जगदीश सिंह जादौन की बकाया राशि का सवाल है उन्होंने दस्तावेजों में वारिस अपने बेटे राजेश को बनाया है। ऐसे में सीधे तौर पर तो केस में अड़चन नहीं है, लेकिन दस्तावेजी कार्रवाई सहित अन्य कारणों से रुपए मिलने में समय लग सकता है। मामला सिर्फ श्रमिक स्व. जादौन का ही नहीं है। बीते सालों में 2 हजार से ज्यादा श्रमिकों का निधन हो चुका है और उनके परिवारों को अभी भी पूरे रुपए नहीं मिले हैं।