तमिलनाडु की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
तमिलनाडु का लिखित इतिहास पल्लवों के काल से ही मिलता है। चौथी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में पल्लवों ने इस क्षेत्र पर राज किया। इसके बाद चोल, चालुक्य, पाण्ड्य जैसे । अनेक राजवंशों ने शासन किया। 200 वर्षों तक दक्षिण भारत पर चोल साम्राज्य का आधिपत्य रहा। प्रदेश में 19वीं शताब्दी तक पुर्तगाल, हॉलैण्ड, फ्रांस एवं इंग्लैण्ड के लोगों ने अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए। 1901 में मद्रास प्रेसीडेंसी बना, जिसमें दक्षिण प्रायद्वीप के अधिकतर भागों को सम्मिलित किया गया। राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के अनुसार मद्रास राज्य से मालाबार, दक्षिणी कनारा और कोलेगल तालुका केरल और कर्नाटक को दे दिए गए। त्रिवेन्द्रम जिले के चार तालुका एवं शेनकट्टा तालुका इसे क्विलोन से मिले। 1960 में इसे चेंगलपेट, सलेम जिलों के बदले में चित्तूर जिला मिला। इस प्रकार मद्रास राज्य 1968 में तमिलनाडु बना।
तमिलनाडु की भौगोलिक स्थिति
राज्य में कांप मिट्टी, लाल बलुई मिट्टी, लेटराइट मिट्टी, काली मिट्टी पाई जाती है।चेन्नई में सर्वाधिक 795 मिमी. वर्षा होती है। पेरियर, सलेम व धरमपुरी में न्यून वर्षा होती है। प्रदेश में नीलगिरि, मेलगिरि एवं पालनी प्रमुख पर्वत हैं। दोदाबेटा [2,640 मी.] प्रमुख पर्वत शिखर है। यहां कोडाइयार, पोझयार, वैगाई, पाझयार, पालर, ताम्रपर्णी, कोर्टालियार, कावेरी, अरानियार, कूडम, चित्तर, गाडिलम, गोमुखी, मुणिमुक्ता, उत्तरी वेल्लर, दक्षिणी वेल्लर एवं अग्रियार प्रमुख नदियां हैं। राज्य की सीमा उत्तर में आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक, दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी एवं पश्चिम में केरल एवं कर्नाटक से लगती है।
तमिलनाडु का परिवहन
प्रदेश में सड़कों की लम्बाई 1,66,061 किमी. है। राष्ट्रीय राजमार्ग की कुल लम्बाई 4,183 किमी. है। रेलवे लाइन की लंबाई 4,201 किमी. है। बॉडगेज 2,246 किमी. और मीटरगेज 1,955 किमी. है। मुख्य रेलवे स्टेशन चेन्नई, मदुरै, तिरुचिरापल्ली, कोयम्बटूर व सलेम हैं। चेन्नई हवाई अड्डा दक्षिणी क्षेत्र का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा होने से यह वायु मार्ग का मुख्य केन्द्र है। कोयम्बटूर, सलेम, तिरुचिरापल्ली एवं मदुरै में भी हवाई अड्डे हैं। चेन्नई व तूतीकोरन राज्य के प्रमुख बंदरगाह हैं। कुड्डालूर, तूतीकोरन एवं नागपट्टिनम सहित राज्य में सात छोटे बंदरगाह हैं।
तमिलनाडु की आर्थिक स्थिति
राज्य में प्रमुख व्यवसाय कृषि है। यहां चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, दालें, कपास, गन्ना, मूंगफली, शीशम, आम, काजू, कॉफी, मिर्च, सूरजमुखी, रबड़, नारियल, मूंगफली, इलायची का उत्पादन किया जाता है। कुल सीमेंट उत्पादन का पांचवां भाग तमिलनाडु में होता है। चीनी, साइकिल, कैल्शियम, नाइट्रोजन, उर्वरक, कास्टिक सोडा, सूती कपड़े, कागज, इस्पात, लोहा, रेल डिब्बे- वैगन, चमड़े का सामान, वाहन. प्रिंटिंग के उद्योग यहां प्रमुख रूप से लगे हुए हैं। यहां क्रोमाइट मैग्नेजाइट, कोयला, बॉक्साइट, चूना पत्थर, अभ्रक, क्वार्टज, जिप्सम, मैंगनीज एवं फेल्सपार मुख्य खनिज हैं।
राज्य के त्योहार
यहां के किसान फसल कटाई के त्योहार पोंगल में अपनी अच्छी फसल के लिए आभार प्रकट करने हेतु सूर्य, पृथ्वी और पशुओं की पूजा करते हैं। पोंगल के बाद दक्षिण तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में जल्लीकट्टू’ (तमिलनाडु शैली की सांडो की लडाई) होता है। तमिलनाडु में अलंगनल्लूर जल्लीकट्टू’ के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। ‘चित्तिरै’ मदुरै का लोकप्रिय त्योहार है। तमिल महीने ‘आदि’ के अठारहवें दिन नदियों के किनारे ‘आदिपेरूकु’ पर्व मनाया जाता है। राज्य में महामाघम् एक पवित्र पर्व है, जो बारह वर्ष में एक बार होता है। यहां के लोगों का कथूरी उत्सव वास्तव में धर्मनिरपेक्ष त्योहार है, जिसमें विभिन्न समुदायों के श्रद्धालु संत फकीर कादिरवाली की दरगाह पर इकट्ठे होते हैं। अन्य उत्सवों में ‘वेलंकन्नी’ उत्सव, प्रकाश पर्व ‘कार्तिगै दीपम्’, तमिलनाडु का संगीत महोत्सव आदि प्रमुख है।
तमिलनाडु के पर्यटन स्थल
चेन्नई
विविधताओं से भरा यह नगर भारत के चार महानगरों में से एक है। यहां आधुनिकता के साथ प्राचीन सभ्यता और संस्कृति सुरक्षित है। चेन्नई कभी पल्लव राजाओं की राजधानी था। चेत्रई में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जो यहां की प्राचीन सभ्यता, कला और संस्कृति से दर्शकों को परिचित कराते हैं। मेरीना बीच संसार के सभी समुद्र तटों में दूसरा सबसे बड़ा और सुरम्य बीच है। इस सागर तट पर लाइट हाउस भी है और अन्ना दुराई व एम.जी.रामचंद्रन की समाधियां भी हैं । रात के समय बिजली की जगमगाहट सागर तट को आकर्षक बना देती हैं। तट पर शंख और सीपियों से बनी सुंदर वस्तुएं बिकती हैं।
इलियट्स बीच– यह बीच पिकनिक के लिए उपयुक्त स्थान है। बीच के किनारे अष्टलक्ष्मी मंदिर और बेलाकनी चर्च है।
वल्लुवरकोट्टम– तमिल के संत कवि तिरुवल्लुवर की स्मृति में निर्मित इस भवन में 33 मीटर लम्बे रथ पर स्थापित तिरुवल्लुवर की प्रतिमा दर्शनीय है। इस भवन के विशाल हॉल में पांच हजार लोग एक साथ बैठ सकते हैं।
थियोसोफिकल सोसायटी– इलियट बीच के पास ही एक बड़े बगीचे में स्थित सोसायटी है। यहां दर्शकों को बड़ी शांति महसूस होती है। यहां एक प्राचीन पुस्तकालय भी
है। प्रसिद्ध नृत्यांगना रुक्मिणी देवी अरुडेंल द्वारा 1936 में स्थापित प्रसिद्ध नृत्य स्कूल में नृत्य, संगीत, चित्रकला, बुनाई और टैक्सटाइल डिजाइनिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा अन्य दर्शनीय स्थलों में गिंडी नेशनल पार्क, वंडलूर जू, बिडला प्लेनेटोरियम, सरकारी संग्रहालय, कपालेश्वर मंदिर, पार्थसारथी मंदिर व मामल्लपुरम के मंदिर मशहूर हैं।
महाबलीपुरम
चेन्नई से 45 किलोमीटर दूर महाबलीपुरम बहुत ही सुंदर समुद्र तट है। यहां कई मंदिर स्थित हैं, जो जीती जागती शिल्प कला का नमूना है। इसे पल्लव राजवंश के राजा महेंद्रवर्मन ने सातवीं शताब्दी में बनवाया था । यहा के दशनाय स्थलों में प्रमुख हैं।
पंचरथ– ये मोनोलिथिक मंदिर हैं यानी एक ही पत्थर से निर्मित हैं । इन्हें पांच पाण्डवों का नाम दिया गया है। ये रथ के आकार में बने हैं ।
शोर टेम्पल– यह पल्लव कला का नमूना है। इस मंदिर में शिव और विष्णु की प्रतिमाएं हैं। यह धर्मराज के रथ को देखकर बनाए गए हैं।
बास रिलीफ– यह व्हेल मछली के आकार की विश्व की सब से बड़ी चट्टान मानी जाती है। इसके एक ओर देवी देवताओं की मूर्तियां तथा दूसरी ओर विभिन्न जानवरों की मूर्तियां उकेरी हुई हैं।
महिषासुरमर्दिनी की गुफा और मण्डप– यहां की गुफाओं में महिषासुर का वध करते हुए दुर्गा की एक मूर्ति है। एक अन्य गुफा में अनंतशैया पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति है। वेदगंतल- महाबलीपुरम में स्थित यह प्रसिद्ध पक्षी अभयारण्य है। इसके अलावा क्रोकोडाइल बैंक, मुथकडू आदि पर्यटक स्थल देखने योग्य हैं।
रामेश्वरम्
रामेश्वरम् की पवित्र भूमि भारतीय प्रायद्वीप के पूर्वी तट पर समुद्र की गोद में स्थित है।
रामनाथ स्वामी मंदिर– इस भव्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था यह द्रविड़ कला शैली का बेजोड़ नमूना है। यहां भारत का सबसे लम्बा गलियारा है, जो पूर्व से पश्चिम तक 197 मीटर और उत्तर से दक्षिण तक 133 मीटर लम्बा है। इस मंदिर में करीब 22 कुएं हैं। कोरल रीफ- यह स्थल प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत सुंदर है। यहां की सुनहरी चमकीली रेत और ऊंचे-ऊंचे नारियल व ताड़ वृक्षों की खूबसूरती देखते ही बनती है।
धनुषकोढ़ी– यहां राम, लक्ष्मण,सीता, हनुमान और विभीषण की मूर्तियां हैं। यह मंदिर तूफान की भेंट चढ़ने से बच गया था।अग्नितीर्थम- इसके मुख्य द्वार से सागर केवल सौ मीटर दूर है। इसके अलावा तिरुपलानि का मंदिर भी दर्शनीय है।
कन्याकुमारी
कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद जब ज्ञान की खोज में निकले थे, तो यहीं पहुंच कर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यहां अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर आकर मिलते हैं। इसलिए यहां तीन अलग- अलग रंग की मिट्टी देखने को मिलती है। यहां लहरों का शोर, कानों में संगीत की तरह गूंजता है।
विवेकानंद स्मारक– यह समुद्र के बीच एक विशाल शिला पर स्थित है। इस शिला पर बैठ कर स्वामी विवेकानंद ने साधना की थी। स्मारक के कक्ष में विवेकानंद की विशाल प्रतिमा है। स्मारक के चारों ओर फैले विशाल समुद्र का दृश्य देखा जा सकता है।
कन्याकुमारी का मंदिर– कन्याकुमारी को अर्पित यह मंदिर भारत के छोर का रक्षक माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता है कि यहां केवल हिन्दू ही प्रवेश कर सकते हैं।
गांधी स्मारक– यहां महात्मा गांधी का अस्थि कलश रखा गया था। यह कन्याकुमारी के पास है।
नागरकोयिल– यहां नागराज का अद्भुत मंदिर है। नागराज का मंदिर होते हुए भी इसमें शिव और विष्णु की मूर्तियां हैं।
सुचिदम– नौवीं सदी के शिलालेख इस मंदिर में मिलते हैं। यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश को एक साथ पूजा जाता है। हनुमान जी की भी एक विशालकाय मूर्ति यहां विद्यमान है। इसके अलावा यहां राजा मार्तण्डवर्मा का बनाया हुआ उदयगिरि का किला भी दर्शनीय है।