सबसे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार लोकसभा सीट से भाजपा सांसद ब्रजेंद्र सिंह ने पार्टी को अलविदा कहा था। खास बात है कि चौ. बीरेंद्र सिंह, जिस बात को लेकर भाजपा से नाराज चल रहे थे, उनकी वह इच्छा भी पूरी हो गई। हालांकि यहां पर टाइमिंग का बड़ा खेल रहा है। चौ. बीरेंद्र सिंह, भाजपा और जजपा गठबंधन के खिलाफ थे। उन्होंने अक्तूबर 2023 में कहा था, यदि भाजपा-जजपा गठबंधन जारी रहा, तो वे पार्टी छोड़ देंगे। 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जजपा को अपने वोट नहीं मिलने वाले हैं। अगर भाजपा और जजपा का गठबंधन जारी रहा, तो बीरेंद्र सिंह नहीं रहेगा, ये बात साफ है।
अब भाजपा ने मंगलवार को जजपा से गठबंधन तोड़कर, चौ. बीरेंद्र सिंह की वह इच्छा पूरी कर दी, लेकिन टाइमिंग में इस घटनाक्रम को पीछे कर दिया। इससे दो दिन पहले सांसद ब्रजेंद्र सिंह ने भाजपा को अलविदा कह दिया था। इसके 48 घंटे बाद भाजपा और जजपा गठबंधन तोड़ने की बात सामने आ गई। हालांकि दोपहर तक इस बाबत जजपा की तरफ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया। दिल्ली में जजपा विधायकों की बैठक चल रही थी। राजनीतिक जानकारों का मानना है, तीसरा घटनाक्रम मुख्यमंत्री खट्टर को बदलना रहा है।
भाजपा ने नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर कई निशाने साध दिए हैं। अब मनोहर लाल खट्टर को लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि खट्टर को सीएम बनाकर भाजपा ने गैर जाट वोटों को साधने का प्रयास किया था। इसमें भाजपा को काफी हद तक कामयाबी भी मिली। खट्टर, पंजाबी समुदाय से आते हैं। प्रदेश के शहरी क्षेत्र में पंजाबी समुदाय की अच्छी खासी तादाद है। अब भाजपा ने सैनी को सीएम बनाकर पिछड़े समुदाय को साधने का प्रयास किया है। भले ही हरियाणा में सैनी समुदाय की संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन वे गैर जाट वोटों का हिस्सा हैं। प्रदेश में भाजपा का फोकस, गैर जाट वोटों पर ही रहा है। पार्टी के नेताओं की सोच है कि पंजाबी, दलित, पिछड़े, ब्राह्मण, बनिया व राजपूत समुदाय का सियासी फायदा, भाजपा को मिलेगा।