कांग्रेस वर्किंग कमिटी की हैदराबाद में हुई दो दिवसीय बैठक में पार्टी के लिए तो जो भी विचार विमर्श हुआ, परंतु सबसे ज्यादा जोर इंडिया गठबंधन में एकजुटता कायम रखने पर दिखा। वर्तमान परिस्थितियों में यह स्वाभाविक ही कहा जाएगा। इसमें सभी मुद्दों पर चिंतन-मनन किया गया, तो आरक्षण की सीमा बढ़ाने की वकालत की गई। संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण को लेकर विचार किया गया।
मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद पुनर्गठित पार्टी वर्किंग कमिटी की यह पहली बैठक ऐसे समय हुई है, जब लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने रह गए हैं। दूसरी बड़ी बात यह है कि इस बीच विपक्षी दलों की एकजुटता के मोर्चे पर गाड़ी इतनी आगे बढ़ चुकी है, जितनी कुछ समय पहले तक लगभग नामुमकिन मानी जा रही थी। विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन का अस्तित्व में आ जाना एक ऐसी बात है जिसने उनके उत्साह और मनोबल में काफी इजाफा किया है। ऐसे में कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक के दौरान भी पार्टी नेतृत्व ने ठीक ही इस गठबंधन की राह को सुगम बनाना अपनी प्रमुख चुनौती के रूप में रेखांकित किया।
ध्यान रहे, पार्टी के अंदर भी पंजाब और दिल्ली जैसी इकाइयों में इस गठबंधन को लेकर काफी असहजता रही है। देखना होगा कि पार्टी नेतृत्व के इन प्रयासों को जमीन पर कितनी सफलता मिलती है। इसकी असली परीक्षा तब होगी जब इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए प्रत्याशी घोषित करने का वक्त आएगा। मध्यप्रदेश, राजस्थान विधानसभा चुनावों को लेकर भी इस तरह की बातचीत चली है।
हालांकि बीच-बीच में यह कह दिया जाता है कि इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनावों के लिए है और विधानसभा चुनावों में कोई सहमति न भी बनी तो उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर आम चुनावों में साथ लडऩे की कसमें खा रहे दल और नेता विधानसभा चुनावों में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं और स्वाभाविक तौर पर प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के खिलाफ खुलकर बोलेंगे, तो वोटरों का मन और मिजाज उससे अप्रभावित रहे, यह कैसे संभव हो सकता है। शायद इसीलिए कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने फैसला किया है कि इंडिया ब्लॉक के साथ सीट शेयरिंग की बातचीत जल्द से जल्द पूरी कर ली जाए। लेकिन इस मामले में सबसे ज्यादा दिक्कत दिल्ली और पंजाब में आप के साथ आना है।
जब खरगे ने प्रदेश अध्यक्षों से यह सवाल किया कि ब्लॉक स्तर पर उनकी कैसी तैयारियां हैं और क्या उन्होंने अपनी तरफ से अच्छे प्रत्याशियों की सूची तैयार कर ली है तो उनका संकेत संगठनात्मक तैयारियों से जुड़ी इन्हीं चुनौतियों की ओर था। कांग्रेस नेतृत्व इसे कितनी गंभीरता से ले रहा है इसका अंदाजा दो बातों से होता है। एक तो यह कि अर्से बाद कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक दिल्ली से बाहर और वह भी तेलंगाना में रखी गई, जहां इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं।
दूसरी बात यह कि बैठक में शामिल सांसद तो सोमवार से शुरू हो रहे विशेष सत्र के मद्देनजर तत्काल दिल्ली लौट आए, पर बाकी सदस्यों से कहा गया कि वे तेलंगाना के किसी न किसी विधानसभा क्षेत्र में जाकर वहां की तैयारियों का जायजा लें। जाहिर है, कांग्रेस समझ रही है कि इंडिया गठबंधन की एकजुटता बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगी कि उसकी केंद्रीय शक्ति के रूप में कांग्रेस आने वाले विधानसभा चुनावों में कितनी मजबूत होकर उभरती है। वैसे वर्किंग कमेटी की बैठक में मध्यप्रदेश में होने वाली इंडिया गठबंधन की रैली पर निर्णय लिया जाना था, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने पहले ही इसका खंडन कर दिया। माना जा रहा है कि अभी यहां कांग्रेस जन आक्रोश यात्राओं की तैयारी में जुटी है, ऐसे में इंडिया गठबंधन की संयुक्त रैली के लिए फिलहाल मना कर दिया गया।
फिर भी, चर्चा तो है कि मध्यप्रदेश में आप और समाजवादी पार्टी से कांग्रेस कुछ सीटों पर सहमति बना सकती है। आप ने तो आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है, और उसके प्रत्याशी चुनाव प्रचार में भी जुट गए हैं। कांग्रेस का मानना है कि मध्यप्रदेश में आप उसे बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं है। कहीं पार्टी के ही नेता टूटकर आप से टिकट ले लें तो बात अलग है। देखना होगा कि कांग्रेस आने वाली चुनौतियों से किस तरह से निपटती है और पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में गठबंधन वाली अन्य पार्टियों के साथ किस तरह की सहमति बनती है? छत्तीसगढ़ में उसे फिर से सफलता मिलने की पूरी उम्मीद है, तो राजस्थान में भी वापसी के लिए जोर मार रही है। मध्यप्रदेश में भी पिछली बार कांग्रेस की ही सरकार बनी थी और इस बार भी वो भाजपा सरकार के खिलाफ कथित एंटी इन्कंबेंसी के सहारे अपनी वापसी के लिए जोर मार रही है।
– संजय सक्सेना