लिफ्ट या ऐलीवेटर (Elevator) एक ऐसी गाड़ी है, जो बहुमंजिली इमारतों में आदमियों या सामान को ऊपर-नीचे लाने और ले जाने का काम करती है. अत्याधुनिक लिपटें बिजली की मोटर से चलती हैं, जिनमें केवल और चरखियों से वजन को संभाला जाता है.
लिफ्ट का अविष्कार और इतिहास
लिफ्ट का आविष्कार किसी एक व्यक्ति द्वारा एक दिन में नहीं हुआ. इसका आधुनिक रूप बहुत से वैज्ञानिकों के सतत प्रयास का हो फल है.
भवन निर्माण के दौरान भारी सामान को तकनीकी विधियों से उठाने की कहानी संभवतः रोमन काल से आरंभ होती है. रोम इंजीनियर वित्रूवियस पोलियो (Vitruvius Pollio) पहली सदी ई.पू. में घिरनियों द्वारा उठने गिरने वाले ऐसे प्लेटफार्म का प्रयोग करते थे, जिन पर भारी सामान रखकर ढोया जा सकता था. इन घिरनियों को आदमी, पशु या जल-शक्ति से घुमाया जाता था. बाद में लगभग 1800 ई. में इंग्लैंड में इनको भाप-शक्ति से चलाया जाने लगा.
19वीं शताब्दी के आरम्भ में द्रवचालित लिफ्टें प्रयोग में आने लगीं. इन लिफ्टों से केवल सामान ढोया जाता था, क्योंकि आदमियों के लिए ये उतनी विश्वसनीय नहीं थीं. 1853 ई. में एलिशा ग्रेव्स ओटिस ने लिफ्ट में सुरक्षा-यंत्र लगाए और इस तरह मानव को ऊपर लाने ले जाने के लिए प्रथम सुरक्षित लिफ्ट का आरंभ हुआ. यह पहली यात्री लिफ्ट 1857 में न्यूयार्क सिटी के हॉवूट (Haughwout) डिपार्टमेंट स्टोर में चालू की गई, यह भाप से चलती थी. यह एक मिनट से कम समय में 5 मंजिलें चढ़ जाती थी. अगले तीन दशकों में इस लिफ्ट के परिवर्धित रूप सामने आए, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन सन् 1889 में हुआ. 1894 में पुश-बटन का प्रयोग होने लगा और इसके बाद तो इसके विकास के लिए डिजाइन में बहुत से संशोधन हुए.
एक बार जब सुरक्षा, गति और ऊंचाई की समस्याएं हल कर ली गई, तो सुविधा और कमखर्च की ओर ध्यान गया. जल्दी ही अधिक सुविधाजनक और सुरक्षित लिपटें बहुमंजिले भवनों में लगाई जाने लगीं. इनकी गति 365 मी. प्रति मिनट तक बढ़ा लो गई. 1950 के बाद ऑटोमेटिक तकनीक भी आविष्कृत कर ली गई, जिससे आदमी द्वारा संचालित करने की जरूरत खत्म हो गई.
आज अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग प्रकार की लिफ्टें बना ली गई हैं. सामान और यात्री ढोने वाली लिफ्टों के अतिरिक्त इनका इस्तेमाल जहाजों, बांधों और रॉकेटों के प्रक्षेपण में भी किया जाता है. सभी लिफ्टें बिजली से चलती हैं. इनमें या तो केबल, घिरनियां और संतुलन-भार-प्रयोग में आता है या ड्रम पर लपेटने का सिस्टम होता है, या इनमें विद्युत और द्रव-संचालन की मिश्रित विधियों को प्रयोग में लाया जाता है. कम गति की लिफ्टों में ए. सी. मोटर होती है और अधिक गति की लिफ्टों में डी.सी. मोटर होती है. लिफ्टें विभिन्न नियंत्रणों द्वारा स्वचालित बना दी गई हैं. इनमें सुरक्षा का पूरा प्रबंध होता है.
अत्याधुनिक लिफ्टों में सामान लादने और उतारने का प्रबंध भी स्वचालित होता है. स्वचालित यंत्र एक सैल-बटन से संचालित होता है. बटन दबते ही स्वचालित क्रेन लिफ्ट में सामान लाद देता है. लिफ्ट वांछित मंजिल तक पहुंचती है और उसी तरह सामान उतार देती है.
ऐसी लिफ्टें जिनमें अंदर होने पर बाहर का दृश्य भी दिखाई दे सके, आजकल बहुत लोकप्रिय हो गई हैं. इस तरह की पहली लिफ्ट पेरिस के एफिल टावर में लगाई गई थी. लिफ्ट का केबिन शीशों का बना था, जिससे कि यात्री दृश्य को विहंगम दृष्टि से देख सकता था.