उल्लू का बोलना या बिल्ली के द्वारा रास्ता काट जाना, अंधविश्वास के कारण मौत का पूर्व संकेत और अशुभ समझा जाता है
मानव सभ्यता के आरंभ से ही अंधविश्वासों ने समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. आज भी ऐसे अनेक लोग हैं, जो विभिन्न घटनाओं के विषय में अंधविश्वासी हैं. वे किसी न किसी कारण से उन अंधविश्वासों से चिपके हुए हैं. वे इन्हें छोड़ना ही नहीं चाहते. क्या आप जानते हो कि इन अनेक अंधविश्वासों का आरंभ कैसे हुआ?
प्राचीन काल में मानव का ज्ञान बहुत ही सीमित था और प्रकृति में होने वाली अनेक घटनाओं जैसे बादलों में बिजली के चमकने, मौसम परिवर्तन आदि को समझने के लिए उनके पास कोई उपयुक्त पद्धति नहीं थी. सूर्य, चंद्रमा, धूमकेतु तथा उल्काओं के विषय में उसे कुछ ज्ञान नहीं था, इनके बुरे प्रभावों से बचने के लिए आदिमानव ने कुछ मनगढ़ंत सिद्धांत प्रतिपादित कर रखे थे, लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान का विकास हुआ मानव की इन खगोलीय पिंडों के विषय में जानकारी भी बढ़ती गई. धीरे-धीरे इनके विषय में मानव के अंधविश्वास कम होते गए, अंधविश्वास कम तो हो गए लेकिन वे पूरी तरह अभी तक लुप्त नहीं हो पाए हैं. वह आज भी डर के कारण सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा करता है.
अंधविश्वास मानव मन में डर के कारण पैदा हुई ऐसी धारणा है, जिसे किसी तर्कसंगत तरीके से सुलझाया नहीं जा सकता. उसे किसी अनुभव के आधार पर भी सिद्ध नहीं किया जा सकता. उदाहरण के लिए पुच्छल तारे या धूमकेतु के दिखाई देने पर ऐसा माना जाता रहा कि या तो प्लेग फैलेगा या कोई भीषण युद्ध होगा. प्राचीन काल में लोगों की यह धारणा भी थी कि चंद्रमा की ओर अधिक देर तक देखने से आदमी में पागलपन के लक्षण आ जाते हैं. वास्तविकता यह है कि लूनैटिक (Lunatic) शब्द की उत्पत्ति ही लैटिन शब्द लूना से हुई है, जिसका अर्थ चंद्रमा है.
चूंकि प्राचीन लोगों को जानवरों के विषय में भी पर्याप्त ज्ञान नहीं था, अतः उनके मन में जानवरों के प्रति भी अनेक अंधविश्वास पैदा हो गए थे. किसी कालो बिल्ली द्वारा कहीं जाते समय रास्ता काट देना बहुत बुरा समझा जाता था. इस अंधविश्वास को आज भी बहुत से लोग मानते हैं. उल्लू का बोलना मौत के आगमन का सूचक माना जाता था. इसी प्रकार बहुत से निराधार अंधविश्वासों से लोग आतंकित रहते थे.
संख्याओं के विषय में भी लोगों के अनेक अंधविश्वास रहे हैं और आज भी हैं. कुछ संख्याओं को सौभाग्य सूचक माना जाता रहा है और दूसरी कुछ को दुर्भाग्यसूचक, जैसे 13 की संख्या को पूरे विश्व में बुरा समझा जाता है, जबकि इस मान्यता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
स्केंडीनेवियन देशों में बिजली चमकने और बादल को गड़गड़ाहट को यह माना जाता था कि उनका देवता घोर (Thor) नाराज हो गया है और अपने शत्रुओं पर हथौड़े से प्रहार कर रहा है.
कहीं जाते समय किसी व्यक्ति का छींक देना आज भी अशुभ माना जाता है. जब किसी भी व्यक्ति को छींक आती है, तो लोग कहते हैं कि ईश्वर इसकी मदद करे, क्योंकि कुछ देशों में तो यहां तक माना जाता है कि छींक आना मृत्यु का लक्षण है.
इसमें संदेह नहीं है कि विज्ञान के विकास से अंधविश्वासों की संख्या में कमी तो हो गई है, लेकिन आज भी बहुत से ऐसे अंधविश्वास हैं, जिन्हें हम और हमारा समाज मानता है.