थर्मामीटर (thermometer) तापमान मापने का एक बहुत उपयोगी उपकरण है. डॉक्टर इसके द्वारा शरीर का तापमान मापते हैं. वैज्ञानिक इसकी सहायता से रासायनिक क्रियाओं, ठोस पदार्थों के पिघलने (गलनांक) और द्रवों के उबलने (क्वथनांक) का तापमान ज्ञात करते हैं. इन्हीं के द्वारा वायुमंडल और कमरे का तापमान भी मापा जाता है. क्या तुम जानते हो कि विभिन्न कार्यों में आने वाले ये धर्मामीटर कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न कामों में आने वाले धर्मामीटरों को हम निम्न वर्गों में बांट सकते हैं:-
1. द्रवयुक्त कांच के थर्मामीटर
2. द्विधातुक पट्टी थर्मामीटर
3. विद्युत थर्मामीटर
4. गैस थर्मामीटर
1. द्रवयुक्त कांच के थर्मामीटर: इन थर्मामीटरों में एक बहुत ही पतले सूराख की कांच की नली में पारा या अलकोहल प्रयोग में लाया जाता है. तापमान के अनुसार इन्हीं द्रवों के फैलने और सिकुड़ने के आधार पर तापमान किया जाता है. कांच की नली के एक सिरे पर एक छोटा-सा बल्ब बना दिया जाता है और दूसरे सिरे पर एक कीप बना दी जाती है. इस कीप की सहायता से कांच की नली को बार-बार ठंडा ओर गर्म करके अलकोहल या पारे से भर दिया जाता है. अब नली के बल्ब को ऐसे उबलते हुए द्रव में रखते हैं, जिसका क्वथनांक थर्मामीटर के उच्चतम तापमान से अधिक होता है. ऐसा करने से नली का कुछ द्रव कीप में वापस आ जाता है. इस तापमान पर कीप वाले पर नली को बंद कर दिया जाता है. नली को इसके बल्ब को बर्फ में रखते हैं. इस तरह नली में भरा द्रव सिकुड़कर किसी एक स्थान पर रुक जाता है. इस स्थान पर एक निशान लगा दिया जाता है. यह थर्मामीटर का निम्नतम बिंदु होता है. अब थर्मामीटर के बल्ब को उस उबलते द्रव में रखते हैं. जिस तापमान का थर्मामीटर बनाना है. इसमें रखने पर थर्मामीटर का द्रव ऊपर चढ़ता है और किसी एक बिंदु पर रुक जाता है. यहां भी एक निशान लगा दिया जाता है. यह थर्मामीटर का उच्चतम बिंदु होता है. इन दोनों निशानों के बीच की दूरी को बराबर हिस्सों में बांट दिया जाता है. बस, थर्मामीटर तैयार है.
थर्मामीटर में पारे के प्रयोग के कुछ विशेष लाभ हैं. पारा ऊष्मा का सुचालक है, अतः तापमान में थोड़ी-सी वृद्धि या कमी के लिए यह तेजी से फैलता या सिकुड़ता है. यह कांच की दीवारों से चिपकता नहीं है. यह बहुत ही चमकीला होता है, इसलिए थर्मामीटर में तापमान को पढ़ना बहुत आसान होता है. इसका क्वथनांक 357° सैल्सियस तथा जमाव-बिंदु 39° सैल्सियस होता है. अतः इससे काफी अधिक और काफी कम ताप मापने वाले थर्मामीटर बनाए जा सकते हैं. शरीर में बुखार होने पर हम पारे के थर्मामीटर को मुंह में रखकर या बगल में दबाकर अपने शरीर का तापक्रम मापते हैं. अलकोहल के लाभ इतने नहीं हैं. इसका सिर्फ एक ही लाभ है कि किसी दिए हुए तापमान के लिए यह पारे से अधिक फैलता है. अलकोहल को थर्मामीटर में प्रयोग में लाने से पहले लाल या नीला रंग दे देते हैं.
इस प्रकार के साधारण पारदर्शी थर्मामीटरों को प्रयोगशालाओं में तापमान मापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. डॉक्टरी थर्मामीटरों में भी पारा ही होता है. मौसम विभाग पारे और अलकोहल से भरे अधिकतम और न्यूनतम थर्मामीटरों को 24 घंटे का सबसे अधिक और कम तापमान मापने के लिए प्रयोग करता है.
2. द्विधातुक पट्टी थर्मामीटर: इन थर्मामीटरों का निर्माण दो धातुओं की पट्टी से होता है. इन धातुओं के प्रसार गुणक अलग-अलग होते हैं, अर्थात् किसी दिए हुए तापमान के लिए ये धातुएं अलग-अलग फैलती हैं. आमतौर पर ये पट्टियां पीतल और इनवार (Invar) की होती हैं. पीतल एक मिश्र धातु है, जो तांबे और जस्ते से बनती है. इनवार भी मिश्र धातु है, जो लोहे और निकल (Nickel) से बनायी जाती है. दोनों पट्टियों को एक के ऊपर दूसरी को रखकर जोड़ दिया जाता है. जब तापमान बदलता है, तो दोनों पट्टियां अलग-अलग फैलती हैं, क्योंकि उनका प्रसार गुणांक अलग-अलग होता है. इसी कारण से संयुक्त पट्टी मुड़ जाती है. इस पट्टी का तापमान दर्शाने वाला संकेतक पट्टी के झुकाव के अनुसार तापमान प्रदर्शित कर देता है.
द्विधातुक थर्मामीटरों का उपयोग तापमान नियंत्रण के लिए रेफ्रीजरेटरों में किया जाता है. इन्हें थर्मोग्राफों में भी काम में लाते हैं. थर्मोग्राफ तापमान अंकित करने का एक उपकरण है. इसमें संकेतक के स्थान पर एक कलम इस्तेमाल जाता है, जो द्विधातुक पट्टी से लगा होता है. यह कलम एक चार्ट पर तापमान रिकार्ड कर लेता है. तापमान के चार्ट को थर्मोग्राफ कहते हैं.
3. विद्युत थर्मामीटर : ये दो प्रकार के होते हैं:
(क) प्रतिरोध थर्मामीटर यह तापमान के साथ प्रतिरोध में होने वाले परिवर्तन के नियम के आधार पर काम करता है. हम जानते हैं कि तापमान के बढ़ने पर धातु से बने तार का प्रतिरोध भी बढ़ता है. इन थर्मामीटरों में कांच की नली है, जिसमें प्लैटिनम का तार कुंडली बनाकर सील कर दिया जाता है. जिस वस्तु का तापमान मापना होता है, उसमें थर्मामीटर रख दिया जाता है. जैसे- जैसे तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे प्लैटिनम के तार का प्रतिरोध भी बढ़ता है. प्रतिरोध को मापकर उस वस्तु का तापमान ज्ञात कर लिया जाता है.
(ख) थर्मोकपल थर्मामीटर इसमें दो विभिन्न धातुओं के दो तार प्रयोग में लाए जाते हैं. इन तारों को जोड़ने पर दो जंक्शन बन जाते हैं. एक जंक्शन बर्फ में रख देते हैं और दूसरा जंक्शन उस वस्तु के संपर्क में रख देते हैं, जिसका तापमान मापना होता है. थर्मोकपल में दोनों जंक्शन के तापमान के अंतर के अनुसार विद्युत धारा पैदा हो जाती है, जिससे एक विभवांतर पैदा होता है. इसे थर्मो ई. एम. एफ. कहते हैं. यह विभवांतर ताप के बढ़ने घटने के साथ-साथ बढ़ता-घटता है. इस विद्युत धारा को एक गैलवनोमीटर की सुई के संपर्क में लाते हैं. गैलवनोमीटर की सुई विद्युत-धारा के बढ़ने घटने के नियम के आधार पर वस्तु का तापमान बता देती है.
4. गैस थर्मामीटर: गैस थर्मामीटरों में तापमान मापने के लिए वायु, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, हीलियम आदि गैसें प्रयोग की जाती हैं. ये थर्मामीटर भी दो प्रकार के होते हैं:-
(क) स्थिर आयतन थर्मामीटर, (ख) स्थिर दाब थर्मामीटर, ये इस सिद्धांत पर कार्य करते हैं कि सभी गैसें तापमान बढ़ने पर फैलती हैं. कोई गैसें किसी तापमान से कितनी फैली हैं, उसके आधार पर तापमान ज्ञात कर लिया जाता है. मुख्य रूप से तापमान को चार इकाइयों में मापा जाता है:
1. सैल्सियस, 2. फैरेनहाइट, 3. रूमर और 4. कैल्विन, सैल्सियस पैमाने में ० डिग्री, पानी को बर्फ में बदलने का तापमान है और 100° C पानी के उबलने का फैरेनहाइट पैमाने में बर्फ का तापमान 32 डिग्री और पानी का क्वथनांक 212 डिग्री होता है. रूमर पैमाने में बर्फ का तापमान ० डिग्री और पानी का क्वथनांक 80° होता है. कैल्विन स्केल पर 273 डिग्री बर्फ का तापमान और 373 डिग्री पानी का क्वथनांक होता है. 273 डिग्री सैल्सियस निम्नतम तापमान है और अभी तक वैज्ञानिक लोग इस तक नहीं पहुंच सके हैं. इसे परम शून्य भी कहते हैं.
थर्मामीटर हमारे लिए बहुत ही उपयोगी हैं. इन्हें डॉक्टर लोग शरीर का तापमान देखने के लिए प्रयोग करते हैं. फैक्टरियों में भट्ठियों का तापमान भी थर्मामीटरों द्वारा ही ज्ञात किया जाता है. इन्हें प्रयोगशालाओं, मौसम-विज्ञान तथा दूसरे प्रयोगों के काम में लाया जाता है.