क्रेन (Crane) एक ऐसी मशीन है, जो भारी बोझ उठाने के काम आती है. यह मशीन मुख्यतौर पर भवन और पुल-निर्माण में भारी बोझों को उठाने, ऊंचाई तक पहुंचाने और इधर-उधर खिसकाने के काम आती है. इस मशीन की बनावट लंबी गर्दन वाले सारस (Crane) पक्षी से मिलती है, इसीलिए इसका नाम क्रेन रखा गया.
यद्यपि क्रेन का इस्तेमाल प्राचीन काल से ही होता आ रहा है, लेकिन इसका आम इस्तेमाल 19वीं शताब्दी में भाप के इंजन, पेट्रोल-इंजन तथा विद्युत मोटरों के विकास के बाद ही हुआ.
मूलरूप से क्रेन दो प्रकार की होती हैं: 1. स्थिर तथा 2. गतिशील. गतिशील क्रेनें अधिक प्रयोग होती हैं. कुछ क्रेनों में जिब होता है, जो ऊपर-नीचे उठ जाता है, तथा दायरे में भी घूम सकता है. कुछ क्रेन पुल जैसा बना लेती हैं तथा बोझ ऊपर नीचे उठा सकती हैं. ये भवन-निर्माण में सामान को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करती हैं.
सामान्य गतिशील क्रेन पहियों वाली मोटर के साथ लगाई जाती हैं, जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति करती है. इसका प्रयोग आमतौर पर निर्माण स्थलों पर होता है. यह क्रेन 80 मीट्रिक टन (72 टन) तक भार उठा सकती है. इनके जिब की लंबाई 30 मीटर (100 फुट) तक होती है.
एक दूसरे प्रकार की क्रेन भी होती है, जिसे हैमरहेड या कैटीलीवर (Cantilever) क्रेन कहते हैं. यह ऊंचे भवनों के निर्माण में काम आती है. इसमें एक लंबा क्षैतिज जिब होता है. इसमें कैंटीलीवर पद्धति का प्रयोग होता यह एक मीनार किस्म की संरचना पर लगा होता है. इस मीनार को बनने वाले भवन की हर मंजिल तक उठाया जा सकता है. सामान का भार एक ट्रॉली से लटका रहता है, जो जिव के साथ-साथ ऊपर उठती है.
पुल-निर्माण में काम आने वाली क्रेनों में बोझ ढोने का उपकरण एक क्षैतिज छड़ पर बने ट्रैक पर चलता है. इसमें दो पटरियां होती हैं, जिसपर बोझा ढोने का उपकरण चलता है.
फोर्कलिफ्ट (Forklift) ट्रक एक ऐसी क्रेन है, जो जलयानों में गोदामों से सामान लादने के काम आती है. इसकी सहायता से बड़े-बड़े बक्से तथा किरेट्स उठाए जा सकते हैं. जैंट्री क्रेन जिनके बूम बहुत लंबे होते हैं, जलयानों से सामान उतारने के काम आती हैं. ओवरहेड क्रेन फैक्टरियों में इस्तेमाल होती हैं.
संसार की सबसे शक्तिशाली क्रेन हेग (नीदरलैंड्स) की हीरम इंजीनियरिंग सर्विस के पास है. इसका भार 5300 टन है और लंबाई 178 मीटर है. यह 3000 टन तक का भार उठा सकती है.