20 जुलाई 1969 को मानव इतिहास में एक ऐतिहासिक पल आया जब नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन अपोलो मिशन में (Apollo mission) चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बन गए। चांद पर अमेरिकी ध्वज फहराते हुए उनकी तस्वीरें आज भी प्रेरणादायी हैं। लेकिन एक सवाल जो अक्सर लोगों के मन में उठता है, वह यह है कि चांद पर हवा न होने के बावजूद झंडा कैसे लहरा रहा था?
वास्तव में, चांद पर अमेरिकी झंडा हवा में लहरा रहा था ऐसा नहीं था। यह एक ऑप्टिकल इल्यूजन था। नासा के इंजीनियरों ने इस समस्या को पहले ही दूर कर लिया था और झंडे को इस तरह से डिजाइन किया था कि वह बिना हवा के भी लहराता हुआ दिखाई दे।
दरअसल, यह धोखा था। इंजीनियरों ने झंडे को एक क्षैतिज क्रॉसबार से जोड़ा था, जो इसे एक झंडे के पोल की तरह सहारा दे रहा था। यह क्रॉसबार टेलिस्कोपिक था, यानी इसे खींचकर ऊपर और नीचे किया जा सकता था। जब आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन ने चांद पर झंडा गाड़ा, तो उन्होंने इस क्रॉसबार को खींचकर ऊपर उठाया, जिससे ऐसा प्रतीत हुआ कि झंडा हवा में लहरा रहा है।
यह झंडा, जिसे “प्लांटेड फ्लैग” के नाम से जाना जाता है, नायलॉन से बना था और उस पर 3 फीट लंबा और 5 फीट चौड़ा अमेरिकी ध्वज था। क्रॉसबार एल्यूमीनियम से बना था और यह 9 फीट लंबा था। झंडे को क्रॉसबार से जोड़ने के लिए, इंजीनियरों ने एक विशेष स्लीव का इस्तेमाल किया था जो झंडे को स्वतंत्र रूप से घूमने देता था।
यह कहना गलत नहीं होगा कि चांद पर लहराता अमेरिकी झंडा मानव ingenuity और चालाकी का प्रतीक है। वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने इस समस्या का एक ऐसा समाधान ढूंढा जिसने न केवल एक यादगार तस्वीर बनाई, बल्कि यह भी दिखाया कि मानव ज़िद्द और तकनीक के सहारे कुछ भी हासिल किया जा सकता है।