संचार क्रांति के दौर में चौतरफा और रोजाना नित नई तकनीकों से दुनिया रू-ब-रू हो रही है। मोबाइल, जीपीएस, इण्टरनेट, बिना ड्राइवर की गाड़ियों से लेकर अब कृत्रिम मेधा यानी एआई (आर्टीफीसियल इण्टेलीजेन्स) के युग में 1950 के जमाने में न्यूयॉर्क से निकले पेजर, 74 वर्षों के बाद पहली बार और एक साथ सीरियल ब्लास्ट में तब्दील हो जाएंगे, भला किसने सोचा था? रेडियो फ्रिक्वेंसी पर चलने वाले पेजर का क्रेज अब न के बराबर है। लेकिन किसी पकड़ या सुराग के लिहाज से बेहद सुरक्षित पेजर का उपयोग आतंकी गतिविधियों में जरूर थोक में होने लगा। इसमें न जीपीएस होता है और न ही कोई आईपी एड्रेस, इसलिए लोकेशन ट्रेस का सवाल ही नहीं। इसका नंबर भी बदला जा सकता है। इसीलिए इसका पता लगाना आसान नहीं होता। बस इसी चलते एक बड़ी साजिश को अंजाम देकर बड़े षड़यंत्र के तहत 9/11 जैसी बल्कि उससे भी बहुत बड़े दायरे में लेबनान में हर वो शख्स विस्फोट का शिकार हुआ जो साजिश के पेजर रखे था।
लेकिन चिन्ता की बात यह कि मामला पेजर तक नहीं रुका बल्कि रेडियो वॉकी टॉकी जैसे दूसरी कम्युनिकेशन डिवाइस यहां तक कि घरों में लगे सोलर सिस्टम भी फटने की बातें सामने आईँ। धमाकों का शक इजराइल पर जताया जा रहा है। इन विस्फोटों को लेकर पूरी दुनिया हैरान है। इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच जारी तनाव और बढ़ गया है। पूरे मिडिल ईस्ट में युद्ध के खतरे की स्थिति बन चुकी है। वायरलेस उपकरणों में सीरियल विस्फोटों के बाद कई घरों, दुकानों, बाइक और दूसरे वाहनों में भी आग लग गई। एक तरह से पूरा क्षेत्र विस्फोटों की जद में आ गया। वहां अब लोग इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के उपयोग को लेकर डरे हुए हैं।
हर कोई हैरान है कि पेजर जैसा साधारण उपकरण बम में कैसे बदल गया? इसको लेकर पुख्ता तौर पर तो अभी किसी तरह की सच्चाई सामने नहीं है। लेकिन विस्फोट को लेकर तरह-तरह के कयास जरूर हैं। संभावनाओं में पेजर में लगी लीथियम बैटरी शक में है जो अत्याधिक गर्म होने पर फट सकती है। लेकिन इस थ्योरी पर भी ज्यादा भरोसा नहीं है। वहीं दूसरी दमदार संभावना साजिश के पेजरों को बनाते के वक्त ही इनमें विस्फोटक छुपाने की है जिससे सप्लायर अन्जान हो? यकीनन साजिश बहुत बड़ी रही जिसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।
बैटरियों में खराबी या गुणवत्ता की कमीं के चलते मोबाइल में विस्फोट तो हो जाते हैं। लेकिन एक तयशुदा वक्त पर रेडियो फ्रिक्वेंसी आधारित छोटे से उपकरण में सीरियल ब्लास्ट का ट्रिगर दबना-दबाना, हैरान कर रहा है। क्या किसी कोडिंग से ऐसा हो पाया? या वजह कुछ और है? ऐसी तमाम बातों की पर्तों को खुलने में वक्त लगेगा। आखिर ऐसी कौन सी रासायनिक श्रृंखला प्रतिक्रिया को अंजाम दिया गया जो अलग-अलग और काफी दूर-दूर तक ट्रिगर में बदल गईं?
हैकर ने ट्रिगरिंग सिग्नल भेजने के लिए कौन सा तरीका अपनाया? फिलाहाल केवल कयास हैं। रेडियो नेटवर्क से संचालित पेजर पर ऐसा कौन सा सिग्नल भेजा गया जो बैटरियां गर्म हुईं और इतनी कि कथित तौर पर साथ रखे घातक विस्फोटक फटे जिन्हें लॉट विशेष में छिपाने की संभावना कही जा रही है। एक सच जरूर है कि कुछ महीने पहले थोक में खरीदे पेजर ही फटे ऐसे में उनमें खतरनाक ज्वलनशील विस्फोटक को छुपाने की थ्योरी जरूर बनती है। सच के लिए इंतजार करना होगा। लेकिन एक सवाल हर किसी के दिमाग में कौंधने लगा है कि मोबाइल या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स कितने सुरक्षित?
कभी लिंक क्लिक करने से खाते खाली होना तो कभी हैक हो जाना, कभी क्लोनिंग के जरिए पूरा डेटा चुरा लेने जैसी घटनाओं को लेकर दुनिया भर में सायबर सिक्योरिटी पर न केवल जोर है बल्कि पूरी गंभीरता है। इसी बीच इतना बड़ा डिजिटल अटैक बहुत बड़ी चुनौती है। इस घटना को चाहे जो नाम दें, दो देशों की दुश्मनी या दुनिया में अशांति का जिम्मेदार बताएं लेकिन इसने संचार क्रान्ति के दौर में बड़े दुरुपयोग का बहुत ही बड़ा मैसेज जरूर दे दिया। युध्द की नई तकनीक रूपी पेजर अटैक ने दुनिया भर के कम्युनिकेशन सिस्टम को बहुत बड़ी चुनौती दे डाली। छोटा सा पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जिसे बीपर भी कहते हैं, इतना खतरनाक..! बेहद हैरानी वाली बात है।
अब इसे इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर कहें, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल का इस्तेमाल या कुछ भी, रेडियो वेव से चलने वाले हजरों पेजर्स फिर वॉकी-टॉकी और सोलर सिस्टम में थोक में हुए विस्फोट संचार क्रान्ति के लिए बड़ी चुनौती जरूर हैं। ऐसी घटनाओं की सूचनाएं कब कहां से आने लगे इसका भी डर है। दुनिया भर में घर-घर उपयोग हो रहे तमाम इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स वजह-बेवजह शक के दायरे में आ गए। यह नई चुनौती मुंह बाएं एकाएक आ खड़ी हुई। क्या पता आगे ऐसे गैजेट्स को बनाने की चंद देशों की हुनरमंदी और बदनीयती दुनिया भर में नई तबाही का कारण भी बनें? भगवान करे आगे ऐसा न हो। सच में दुनिया उस मोड़ पर आ खड़ी हुई है जहां समूची मानवता पर मंडरा रहे इस खतरे से बचाव खातिर तुरंत सुरक्षित रास्ते तलाशने ही होंगे।
लेखक: ऋतुपर्ण दवे (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)