नई दिल्ली। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को शीर्ष अदालत को बताया कि वह छह महिला न्यायिक अधिकारियों को असंतोषजनक प्रदर्शन के लिए उनकी सेवाओं से बर्खास्त करने के अपने पहले के फैसले पर कायम है। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय से कहा था कि वह तीन हफ्ते के भीतर फैसला करे कि क्या वह इन न्यायिक अधिकारियों की सेवाओं को खत्म करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकता है।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय की ओर से पेश वकील ने पीठ को फैसले के बारे में बताया। छह पूर्व न्यायिक अधिकारियों में तीन ने अपनी सेवाएं समाप्त करने के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाओं पर सुनवाई कर रही पीठ ने मामले में अगली प्रक्रिया की तारीख 30 अप्रैल तय की।
शीर्ष अदालत ने 12 जनवरी को छह महिला सिविल न्यायाधीशों की सेवा समाप्त करने का संज्ञान लिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। अदालत ने बर्खास्त न्यायिक अधिकारियों को नोटिस जारी कर अपनी दलीलें रिकॉर्ड पर रखने को कहा था।
वरिष्ठ वकील गौरव अग्रवाल इस मामले में न्यायमित्र के रूप में शीर्ष अदालत की मदद कर रहे हैं। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान एक पूर्व न्यायिक अधिकारी ओर से वकील तन्वी दुबे पेश हुईं। अग्रवाल ने इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति ने इन पूर्व न्यायिक अधिकारियों के कामकाज के बार में कोई गलत टिप्पणी नहीं की है। उन्होंने कहा था कि छह में से तीन पूर्व न्यायिक अधिकारियों न अपनी सेवाएं समाप्त होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था