नर्मदा हिमपुत्री नहीं है, वह वनपुत्री है। गंगा के ग्लेशियर बर्फ की चट्टानें हैं। नर्मदा के ग्लेशियर उसके वनों से निकलने वाली सहायक नदियाँ और उन सहायक तक जल लाने वाली सैकड़ों-हजारों-लाखों जल धमनियाँ हैं जिन्हें ‘नाले’ कहना उनका अपमान लगता है। इनका अध्ययन करने के लिये एक जीवन नाकाफ़ी है। ये जल धमनियाँ ही असली नर्मदा हैं। इनमें ही वह बैक्टीरिया अभी भी हैं जो नर्मदा के जल को सालों-साल सड़ने नहीं देते थे। यही वह जल है जिसे चुल्लू भर कर दूध की तरह पी सकते हैं। यह दुधनेर उपनदी है और सात धाराओं में बहने के कारण मटकुली में सतधारा कहलाती है। आगे जाकर वह देनवा का आलिंगन कर लेती है जो तवा की सहायक नदी है। तवा नर्मदा की सहायक नदी है। सोचिये- दुधनेर>देनवा>तवा> नर्मदा। जब तक ये जल धमनियाँ हैं तभी तक मैकलसुता है। वर्ना क्षिप्रा और सरस्वती भी नदियाँ नहीं इतिहास ही हैं।
अब इसके बरअक्स ब्रह्मांड के सबसे बड़े अख़बार की खबर देखिये। वे इसे पर्यटन बना देना चाहते हैं। भाई पत्रकारों नदियों पर रहम खाइये। सब जानते हैं ७०% पर्यटन दारू-मुर्ग़ा- म्यूजिक है। २०% धार्मिक है। बाक़ी १०% में शुद्ध पर्यटन है। नदियों पर पर्यटन रूपी बलात्कार मत थोपिये। और भी जगहें हैं जहाँ अपना कौशल दिखाइये।हो सके तो इस स्वर्ग को चाँद पर ले जाइये। नर्मदा मैया को बख्श दीजिये।
बाढ़ की संभावनायें सामने हैं
और नदियों के किनारे घर बने हैं
चीड़ वन में आँधियों की बात मत कर
इन दरख़्तों के बहुत नाज़ुक तने हैं।