भोपाल। मध्य प्रदेश में बीजेपी ने मुख्यमंत्री शिवराज को हाशिए पर धकेल कर पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ कर कितना सही फैसला लिया, ये तो तीन दिसंबर को ही पता चलेगा, लेकिन अभी से राज्य के राजनीतिक गलियारों में इसकी चर्चा जरूर है कि अगर यहां कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो मोदी को कितना घाटा हो सकता है। ये चुनाव मोदी बनाम कमलनाथ हो गया था, क्योंकि कांग्रेस ने कमलनाथ को अघोषित तौर पर सीएम का चेहरा बना दिया।
मध्य प्रदेश मेंअटडन होने के बाद अब केवल सरकार बनने की चर्चाएं चल रही हैं। भाजपा अपनी सरकार बनने का दावा कर रही है तो कांग्रेस अपनी। बीजेपी नेतृत्व ने सीएम शिवराज के बजाय pm मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा। इसके पीछे एक तो शिवराज के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी थी तो दूसरी ओर मोदी की लोकप्रियता। चुनाव पूर्व से ही एमपी के मन में मोदी और मोदी के मन में एमपी, नारा चलाया गया। इसके पीछे प्रमुख कारण यही बताया गया कि लोकसभा के लिए तैयारी हो जायेगी। हारने की बात सोची ही नही गई। वैसे भी कर्नाटक में मोदी का चेहरा आगे रखा था, हारने के बाद मोदी पर कोई टिप्पणी नहीं हुई। हारे तो शिवराज और जीते तो मोदी, यही फार्मूला रहा। यही एमपी में भी अजमाया जा रहा है।
लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने ये नही सोचा कि यदि कांग्रेस जीती तो क्या होगा. भले ही कांग्रेस में पहले सीएम चेहरे को लेकर विवाद हुआ, लेकिन हाई कमान की अपरोक्ष सहमति कहें या निर्देश थे, कमलनाथ को पूरी पार्टी ने एमपी का चेहरा मान लिया। इस तरह पूरा चुनाव मोदी बनाम कमलनाथ हो गया। इधर शिवराज मैदान तो सबसे ज्यादा दिखते रहे, पर अंदर से उन्होंने बीजेपी को जीतने के कितने प्रयास किए, ये नतीजे आने पर ही पता चल पाएगा।
मध्य प्रदेश के मतदान की बात करें तो ट्रेंड एकदम साफ नहीं रहा। चुनाव के कुछ दिन पहले की बात करें तो सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ था। चुनाव प्रचार के समय मामला काफी नजदीकी हो गया। बीजेपी के लिए संगठन बड़ी समस्या बन गया। पहली बार बीजेपी का संगठन मैदान में उतना सक्रिय नहीं दिखा, जितना कि हमेशा रहा करता था।
और घर से वोटर निकालने वाली फौज तो गायब ही रही। ये काम बीजेपी ले बजाय संघ के कार्यकर्ता ज्यादा किया करते थे। अब वो नही दिखे। सही बात तो ये है कि संघ इस छ नव में सक्रिय नहीं दिखा। इसके पीछे बड़ा कारण बीजेपी की कार्यप्रणाली और संघ की अनदेखी मानी जा रही है।
वोटिंग का ट्रेंड देख कर विशेषज्ञ तो इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं कि बीजेपी के पाख में मतदान काम हुआ। लाडली बहना का असर यदि हुआ, तो हो सकता है दो चार सीटें बढ़ जाएं। इससे ज्यादा की उम्मीद नहीं। कोई चमत्कार ही बीजेपी को जिता सकता है, ये बीजेपी के ही नेता मान रहे हैं और गुप चुप तरीके से कह भी रहे हैं। अंचलवार विश्लेषण भी बीजेपी के पक्ष ने जाता नहीं दिख रहा।
कुल मिलाकर यदि एमपी ने मोदी को नकार दिया तो क्या होगा..? ये सवाल उठ रहा है। कमलनाथ को इससे क्या और कितना फायदा होगा? यदि बीजेपी जीती तो एमपी में सीएम कौन बनेगा? ये भी सवाल तो उठेगा, क्योंकि आधा दर्जन से अधिक बड़े नेता मैदान में उतारे गए हैं।