भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में ग्वालियर दौरे पर आए थे। ये दौरा राजनीतिक नही था, अकादमिक था। लेकिन मोदी ने इशारों ही इशारों में मध्य प्रदेश की आगामी राजनीति का नक्शा जरूर खींच दिया। राजनीतिक गलियारों में तो यहां तक कहा जा रहा है कि यदि विधानसभा में बीजेपी को बहुमत मिला तो सिंधिया मुख्यमंत्री हो सकते हैं।
पहले एक नजर मोदी के भाषण पर डालते हैं। अपनी उपलब्धियों के अलावा मोदी ने सिंधिया घराने की तरीफ में खूब कशीदे गढ़े। उन्होंने कहा…
महाराजा माधो राव सिंधिया प्रथम की सोच तात्कालिक लाभ की नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को उज्जवल बनाने की थी. सिंधिया स्कूल उनकी इसी दूरगामी सोच का परिणाम था, वो जानते थे कि मानव संसाधन की ताकत क्या होती है. बहुत कम लोगों को पता होगा कि माधो राव जी ने जिस भारतीय परिवहन कंपनी की स्थापना की थी, वो आज भी दिल्ली में डीटीसी के रूप में चल रही है।
पीएम मोदी ने कहा, “ऋषि ग्वालिपा, संगीत सम्राट तानसेन, श्रीमंत महादजी सिंधिया जी, राजमाता विजयराजे जी, अटल जी और उस्ताद अमजद अली खां तक, ग्वालियर की ये धरती, पीढ़ियों को प्रेरित करने वालों का निर्माण करती रही है.”“मैं आप सभी का आभार व्यक्त करता हूं कि आपने मुझे यहां इस गौरवमयी इतिहास से जुड़ने का अवसर दिया. ये इतिहास सिंधिया स्कूल का भी है और इस ऐतिहासिक ग्वालियर शहर का भी है.”
दो वजह और दामाद सिंधिया
और सबसे खास ये रहा – दो वजहों से ग्वालियर से मेरा विशेष नाता भी है: एक तो मैं काशी का सांसद हूं और काशी की सेवा करने में, हमारी संस्कृति के संरक्षण में, सिंधिया परिवार की बहुत बड़ी भूमिका रही है. सिंधिया परिवार ने गंगा किनारे कितने ही घाट बनवाए हैं, बीएचयू की स्थापना के लिए आर्थिक मदद की है. दूसरा कनेक्ट ग्वालियर से ये हैं की ज्योतिरादित्य गुजरात के दामाद हैं।
मध्य प्रदेश की आगामी रणनीति
प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इस दौरे की खास चर्चा चल रही है। पहली खास बात तो ये रही कि चुनाव के चलते मोदी एमपी में आए, पर कोई सभा संबोधित नही की। दूसरी, लंबे समय से प्रदेश में सिंधिया को बीजेपी की राजनीति हाशिए पर धकेलने की चर्चा भी थी, मोदी ने इस चर्चा पर तो विराम लगा दिया। साथ ही आने वाले दिनों में सिंधिया का पावर घटने वाला नही है, ये भी जता दिया। गुजरात का दामाद बोल कर और भी आगे के संकेत दे दिए।
विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण पर नजर डाली जाए तो न चाहते हुए भी शिवराज के हिस्से में सब से ज्यादा सीटें आईं हैं। सिंधिया के कुछ टिकट जरूर कट गए, पर कुछ अतिरिक्त टिकट भी उन्हें मिल गए हैं। यानि उनके उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है। औरोदी को साफ संकेत यही समझ आए कि उन्हें आगे एमपी का नेतृत्व सौंपा जा सकता है। बीजेपी के अंदरखाने में भी ये बात चल रही है और इससे कई नेताओं के पेशानी पर बल भी पड़ते दिख रहे हैं।