इंदौर। जीएसटी का छापा पड़ने से इंदौर की फेमस ‘करणावत पान’ शॉप और भोजनालय सुर्खियों में है। इनके शहर में 32 पान आउटलेट और 12 भोजनालय हैं। सालाना करोड़ों का टर्न ओवर है। विभाग को जानकारी मिली की आय कम दिखाई जा रही है और बिना रिकॉर्ड के बिक्री की जा रही है। फाउंडर गुलाब सिंह चौहान चौथी फेल हैं। इंदौर आकर उन्होंने पहले 1 पान दुकान खोली। देखते ही देखते आंकड़ा 32 दुकान तक पहुंच गया।
गुलाब सिंह चौहान का परिवार राजस्थान के रहने वाले हैं। इनके इंदौर आने की भी रोचक कहानी है। बचपन में चौथी कक्षा में चौहान फेल हो गए थे। पिता ने हौसला बढ़ाया और पढ़ाई जारी रखने के लिए कहा। लेकिन इस बार भी रिजल्ट पॉजिटिव नहीं रहा।
दूसरे साल भी चौथी कक्षा में फेल हो गए। डर के कारण पिताजी का सामना नहीं किया। दोस्तों से कुछ रुपए उधार लिए (करीब 7 रुपए) और 1979 में इंदौर आ गए। पढ़ाई भी छूट गई। इंदौर में काम की तलाश शुरू की। एक पान दुकान पर काम मिला। दो-तीन साल पान दुकान पर ही काम किया। एक दिन दिमाग में आया कि अब खुद की दुकान खोलना है और काम छोड़ दिया।
1982 में डाली इंदौर में पहली पान दुकान
साल 1982 में इंदौर में साउथ तुकोगंज क्षेत्र में पहली पान की दुकान शुरू की। काम करने का पहले से अनुभव था। ऐसे में दुकान को जमने में टाईम नहीं लगा। दुकान चल पड़ी। 1984 में हुए दंगे में दुकान जल गई। किसी (दंगाई) ने दुकान में आग लगा दी थी। पूरा सामान खाक हो गया था।
चौहान ने फिर एक होटल में नौकरी की। कुछ समय तक ऐसा ही चलता रहा। 1987 में शादी हो गई। जिम्मेदारी बढ़ गई। कुछ रुपए इकट्ठा कर फिर से नौकरी छोड़ पान की दुकान शुरू की। चौहान का छोटा भाई भी इंदौर आ गया। वह दुकान पर बैठने लगा। दूसरी दुकान भी शुरू कर दी।
रिश्तेदारों को साथ लिया और फैलता गया कारोबार
जब पान की दो दुकान हो गई तो चौहान को पूरा कारोबार समझ आ गया। कितना खर्च आएगा और दुकान कैसे चलेगी। इसके बाद एक के बाद एक दुकान खोलने का सिलसिला शुरू हुआ। चौहान ने रिश्तेदारों को पान की दुकान खुलवाई। एक तरह से
फ्रेंचाईजी मॉडल लागू किया
कच्चा माल आदि सब कुछ चौहान ही सप्लाय करता था। रिश्तेदारों की भागीदारी से कारोबार लगातार बढ़ता गया। 70 से ज्यादा रिश्तेदारों को साथ में ले लिया। सभी भरोसेमंद रहे। किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी भी होती तो वो बाहर नहीं आती। देखते ही देखते इंदौर में 32 पान के आउटलेट हो गए। आज भी सभी रिश्तेदार चौहान के साथ जुड़े हुए हैं। सभी रिश्तेदारों के इंदौर में मकान है।
जिस बिल्डिंग में चौकीदारी की उसे ही खरीद लिया
चौहान की जिंदगी से जुड़ा एक किस्सा किसी फिल्म के सीन से कम नहीं है। शुरुआती दिनों में पान की दुकान पर काम करने के साथ ही चौहान ने एक बिल्डिंग में चौकीदारी भी की। दिन में काम करते और रात को चौकीदारी। लेकिन जब पान आउटलेट की चेन चल पड़ी तो कुछ सालों के बाद उसी बिल्डिंग को चौहान ने खरीद लिया जहां कभी चौकीदारी की थी। एक अन्य बिल्डिंग में किराए से स्टूडेंट्स को रूम भी दे रखे हैं। इस तरह अच्छी खासी प्रॉपर्टी करणावत ग्रुप ने बनाई।
2009 के बाद शुरू किए भोजनालय
करणावत के 12 भोजनालय शहर में संचालित हैं। करणावत भोजनालय की शुरुआत साल 2009 के बाद हुई। पान आउटलेट की तरह भोजनालय का काम भी चल पड़ा। पान-सुपारी के करणावत का रिटेल का भी बड़ा कारोबार है। सूत्रों के मुताबिक पान आउटलेट और भोजनालय दोनों मिलाकर करीब 25 करोड़ रुपए से अधिक का ग्रुप का सालाना टर्नओवर है।