भोपाल। पिछले तीन महीने में कांग्रेस समेत दूसरे दलों के करीब 9 हजार नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं। इनमें सामान्य, ओबीसी, एससी, एसटी सभी वर्ग के नेता शामिल हैं। लेकिन, जो बड़े चेहरे हैं वो ज्यादातर ब्राह्मण वर्ग से जुड़े हैं। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके सुरेश पचौरी, संजय शुक्ला, अरुणोदय चौबे, आलोक चंसोरिया जैसे नाम भी शामिल हैं। सवाल उठ रहा है कि ये ब्राह्मणों का बीजेपी प्रेम है या फिर बीजेपी का ब्राह्मण प्रेम .? एक खास बात ये भी दिखी कि प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा पर गाहे बगाहे ब्राह्मणवाद के आरोप लगते रहे हैं, और अब बीजेपी में लाने वाली टोली के मुखिया नरोत्तम मिश्रा हैं, इन पर भी ब्राह्मणवादी का ठप्पा लगा हुआ है।
देखा जाए तो प्रदेश की राजनीति में एक समय में ब्राह्मणों का वर्चस्व हुआ करता था। पहले मुख्यमंत्री ही पंडित रविशंकर शुक्ल थे। लेकिन समय के साथ उनके वर्चस्व और रसूख में कमी आती गई। नवंबर 1956 में मप्र राज्य के गठन के बाद साल 1990 तक पांच ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने करीब 20 सालों तक शासन किया। इसके बाद पिछले तीस सालों से कोई ब्राह्मण चेहरा प्रदेश की सियासत में उभर नहीं सका है।
जानकार मानते हैं कि चाहे वह कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही राजनीतिक दलों का जाति आधारित सियासत पर जोर रहा है। कांग्रेस में तो ब्राह्मण वर्ग से आने वाले नेता 80 के दशक के बाद हाशिए पर चले गए। बीजेपी ने 20 सालों में पहली बार राजेंद्र शुक्ल को डिप्टी सीएम बनाकर इस वर्ग को तवज्जो दी है।
ऐसे में जानकारों का मानना है कि कांग्रेस से जुड़े ब्राह्मण चेहरों को लगता है कि बीजेपी उनके लिए मुफीद है। वे इसकी एक और वजह मानते हैं कि जिस तरीके से बीजेपी ने सनातन संस्कृति को बढ़ावा देने और कांग्रेस को सनातन विरोधी करार देने की मुहिम छेड़ रखी है। उसे ब्राह्मण वर्ग से आने वाले चेहरों की उसे जरूरत हैं। यानी दोनों एक दूसरे की जरूरत बने हुए है।
सुरेश पचौरी : पूर्व केंद्रीय मंत्री। 50 सालों से कांग्रेस से जुड़े थे। इंदिरा गांधी के समय से कांग्रेस में रहे।
संजय शुक्ला : इंदौर-1 के पूर्व विधायक रहे। इस बार विधानसभा चुनाव हार गए। इंदौर लोकसभा से प्रत्याशी की रेस में थे।
अरुणोदय चौबे : खुरई विधानसभा 2008 में विधायक चुने गए। सागर लोकसभा सीट से दावेदारी वापस लेते हुए कांग्रेस छोड़ दी।
शशांक शेखर : कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने महाधिवक्ता बनाया था। वे विवेक तन्खा के करीबी लोगों में शामिल हैं।
आलोक चंसौरिया : जबलपुर लोकसभा का कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ चुके हैं। पेशे से प्रोफेसर चंसौरिया कांग्रेस की वैचारिक रीढ़ माने जाते थे।
रंजना मिश्रा : सीधी जिले से आने वाली रंजना कांग्रेस महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री थी। इनके साथ जिला महामंत्री रोहित मिश्रा भी भाजपा में शामिल हुए।
सुरेश पांडे : सीधी जिले से आने वाले पांडे कांग्रेस में को-ऑपरेटिव सेल के प्रदेश महामंत्री थे।
रश्मि मिश्रा : रायसेन जिले से आने वाली रश्मि कांग्रेस क महिला प्रदेश संगठन मंत्री रह चुकी हैं।
कैलाश मिश्रा : भोपाल से आने वाले और सुरेश पचौरी के करीबी नेताओं में शामिल हैं। अभी भोपाल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष थे।
सुरेश पचौरी के इस बयान से समझिए कांग्रेस के अंदरुनी हालात
9 मार्च को बीजेपी जॉइन करने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने कहा था कि कभी कांग्रेस में एक नारा लगा था, न जात पर न पात पर… लेकिन, पार्टी में ये नारा दरकिनार कर दिया गया है। आज जाति की बात हो रही है।
दरअसल, सुरेश पचौरी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान पर तंज कसा था। भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी लोगों से उनकी जाति पूछ रहे हैं। जातिगत जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं। जानकार मानते हैं कि राहुल का ये स्टैंड उन्हीं की पार्टी के सवर्ण नेताओं को रास नहीं आ रहा है।
सुरेश पचौरी बीजेपी जॉइन करने वाले हैं इसके बारे में कांग्रेस नेताओं को ही नहीं पता था। वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक में खुद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि यदि उन्हें पचौरी के कांग्रेस छोड़ने की बात पहले पता होती तो वे उनसे बात करते।
1980 के बाद से कांग्रेस में कैसे हाशिए पर पहुंचे ब्राह्मण नेता
मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के पंडित रविशंकर शुक्ल थे जबकि कांग्रेस के ही श्यामा चरण शुक्ल साल 1990 में ब्राह्मण समाज से आने वाले प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री थे। इस बीच कांग्रेस के कैलाश नाथ काटजु और द्वारका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री रहे जबकि 1977 में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया उस समय के जनसंघ के नेता कैलाश जोशी ने।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश शर्मा कहते हैं साल 1957 से 1967 तक कांग्रेस के आधे से ज्यादा विधायक उच्च जाति के होते थे और उनमें से भी 25 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण थे। कहा जाता है कि श्यामा चरण शुक्ल जब 1969 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उनके 40 मंत्रियों में से 23 ब्राह्मण थे।
80 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने श्यामा चरण शुक्ल के कद को कम करने के लिए मोतीलाल वोरा और सुरेश पचौरी जैसे ब्राह्मण नेताओं को आगे बढ़ाने की कोशिश की। 1985 में जब अर्जुन सिंह पंजाब के राज्यपाल बनाए गए तो उन्होंने वोरा को सीएम बनाया। अर्जुन सिंह ने ब्राह्मणों के राजनीतिक वर्चस्व को कम करने के लिए एक तरफ तो नए ब्राह्मण नेताओं को बढ़ावा दिया दूसरी तरफ ठाकुरों और आदिवासी तथा पिछड़े वर्ग का राजनीतिक गठजोड़ बनाया।