भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा है, लेकिन वर्तमान में चारों ओर असुरक्षा का माहौल बनता दिख रहा है। इधर पाकिस्तान की तरफ से लगातार घुसपैठ की घटनाएं होती रहती हैं तो उधर हिमालय की सीमा पर चीन नाक में दम कर रहा है। अब नई चुनौतियां हमें समुद्र की तरफ से मिल रही हैं।
उत्तरी हिंद महासागर से लाल सागर तक फैले समुद्री क्षेत्र में हाल ही में हुए दो हमलों को भारत के लिए एक गंभीर चुनौती कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन हमलों ने हमारे लिए सुरक्षा की दुविधा खड़ी कर दी है। पहले भारत की ओर जा रहे एमवी केम प्लूटो पर प्रॉजेक्टाइल से हमला किया गया। इसके चालक दल में 21 भारतीय थे। फिर कुछ ही घंटों बाद दक्षिणी लाल सागर में 25 भारतीयों के साथ जा रहे कच्चे तेल के टैंकर एमवी साई बाबा पर ड्रोन हमला हुआ।
खबरों के अनुसार यमन के हूती विद्रोहियों की तरफ से अब उन जहाजों को निशाना बनाया जा रहा है जिनका इजराइल से कोई संबंध नहीं है। इससे संदेह बढ़ गया है कि हूतियों के ईरानी समर्थक रणनीतिक उद्देश्यों के लिए विद्रोहियों को टारगेट्स की लिस्ट दे रहे हैं। हालांकि, ईरान की ओर से इसे सिरे से खारिज किया जा रहा है।
बात कुछ भी हो, भारत को भारतीय चालक दल और तिरंगे वाले या जिनमें भारत का माल जा रहा हो, उन जहाजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ईरान से बातचीत करनी चाहिए। लेकिन अरब देशों के साथ प्रगाढ़ होते संबंधों के साथ-साथ इजराइल के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के कारण पिछले कुछ वर्षों में नई दिल्ली के तेहरान के साथ संबंध खराब हो गए हैं। इजरायल द्वारा फलस्तीन पर किए जा रहे हमलों का विरोध न करने के चलते ईरान नाराज चल रहा है।
अमेरिका ने हाल ही में एक बहुराष्ट्रीय नौसेना बल ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन यानि ओपीजी का प्रस्ताव दिया था। डेनमार्क की बड़ी शिपिंग कंपनी मस्क ने कहा कि वह ओपीजी के संरक्षण में लाल सागर से आवागमन फिर से शुरू करेगा। हालांकि, इसमें कई समस्याएं हैं। जहाजों की उपलब्धता की कोई कमी नहीं है, लेकिन कई देश वर्षों से इस क्षेत्र में समुद्री डकैतों से जूझ रहे हैं और उनके खिलाफ अभियानों में लगे हुए हैं। लेकिन अरब देश यमन पर हमला करना नहीं चाहते हैं क्योंकि यमन भी एक अरब देश ही है। इसी तरह, कुछ देश इजराइल के फायदे में काम करते हुए दिखना नहीं चाहते हैं जबकि कुछ ईरान से जुड़े एक बड़े क्षेत्रीय संघर्ष से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
चीन अपने हितों पर खतरा भांप रहा है, बावजूद इसके वह ओपीजी में शामिल नहीं हुआ है। इस वजह से समस्या में एक जियो-पॉलिटिकट एंगल भी जुड़ गया है। ईरान चीन और रूस के साथ अपने प्रतिनिधियों के जरिए अपनी विघटनकारी क्षमताओं का प्रदर्शन कर रहा है। ऐसे में भारत के पास अपनी समुद्री गतिविधियां जारी रखने और अपने जहाजों की रक्षा बड़ी चुनौती बन गया है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके लिए भारत को अमेरिकी नौसेनिक एसेट्स का साथ लेना चाहिए। यही नहीं, जिस तरह हाल की घटनाओं में भारतीय नौसेना ने तत्काल कार्रवाई की, उसी तरह आगे भी ऐसी ही कोशिशें बरकरार रहें, यह सुनिश्चित करना होगा।
कहीं न कहीं हमें अपनी विदेश नीति पर फिर से विचार करने की जरूरत भी समझ आ रही है। यह सही है कि हम आतंकवाद के घोर विरोधी हैं और आतंकवाद का समर्थन करने वालों का साथ भी नहीं देते, लेकिन दुनिया के बाकी देशों के साथ हमारे संबंधों की हमें फिर से समीक्षा करनी होगी। हमारे सुरक्षा हित सर्वोपरि हैं, इसलिए इससे जुड़ी चुनौतियों के लिए नए सिरे से रणनीति बनाने की आवश्यकता भी जान पड़ती है। हम हर खतरे को नजरअंदाज न करें और न ही विश्व स्तर पर चल रही गतिविधियों को नकारने का प्रयास करें। इन्हीं से हमें अपने लिए भी रणनीति बनाने की मदद मिल सकती है। हम सतर्क हैं, यह अच्छी बात है, और अधिक सतर्कता की जरूरत है। साथ ही सुरक्षा के लिए कुछ ठोस अंतरराष्ट्रीय समझौतों की आवश्यकता भी है।
– संजय सक्सेना