यूनाइटेड नेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम ने हाल ही में मानव विकास सूचकांक जारी किया है। इस इंडेक्स के अनुसार 2022 में 193 देशों की सूची में भारत 134वें स्थान पर है। यह साल 2021 में 192 देशों में से 135वें स्थान से एक पायदान ऊपर है। यानि पिछले वर्ष की तुलना में सभी एचडीआई संकेतकों में सुधार देखने को मिला है, लेकिन अभी भी यह संतोषजनक नहीं कहा जा सकता।
यूएनडीपी की मानव विकास रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार, भारत ने लैंगिक असमानता को कम करने में प्रगति दिखाई है। लैंगिक असमानता सूचकांक में 166 देशों में से भारत 108वें स्थान पर है, जबकि 2021 में 170 देशों की तुलना में भारत 122वें स्थान पर था। 2022 में भारत ने वैश्विक औसत 0.462 और दक्षिण एशियाई औसत 0.478 से बेहतर प्रदर्शन किया है। जीआईआई तीन प्रमुख आयामों में लैंगिक असमानताओं को मापता है। इनमें प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तिकरण और श्रम बाजार शामिल है। देश में जीवन प्रत्याशा 67.2 से बढक़र 67.7 वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 12 से बढक़र 12.6 वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,542 डॉलर से बढक़र 6,951 डॉलर हो गया है।
जीआईआई पर रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रजनन स्वास्थ्य में भारत का प्रदर्शन मध्यम मानव विकास समूह या दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तुलना में बेहतर है। 2022 में भारत की किशोर जन्म दर 16.3 थी (15-19 आयु वर्ग की प्रति 1,000 महिलाओं पर जन्म), जो 2021 में 17.1 से मामूली सुधार है। हालांकि, भारत ने श्रम बल भागीदारी दर में सबसे बड़े जेंडर अंतर में से एक दिखाया। यहां- महिलाओं और पुरुषों के बीच 47.8 प्रतिशत का अंतर है। महिलाएं की वर्क फोर्स में 28.3 प्रतिशत और पुरुष की 76.1 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
हालांकि, जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स (जीडीआई) पर, भारत ग्रुप-5 देशों में शामिल रहा, जो अंतर को मिटाने में निचले स्थान पर हैं। जीडीआई तीन आयामों पर जेंडर डिफरेंस को मापता है। इनमें हेल्थ, जो जन्म के समय जीवन प्रत्याशा से मापा जाता है, वयस्कों के लिए स्कूली शिक्षा के वर्ष और जीवन स्तर शामिल हैं। जबकि 2022 में महिलाओं के लिए जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 69.4 वर्ष और पुरुषों के लिए 66.3 वर्ष थी। हालांकि, जब स्कूली शिक्षा के लिए औसत वर्षों की बात आई, तो यह महिलाओं के लिए 5.5 और पुरुषों के लिए 7.6 वर्ष थी। महिलाओं के लिए प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 2958 डॉलर और पुरुषों के लिए 10,696 डॉलर थी।
यूएनडीपी इंडिया में स्थानीय प्रतिनिधि कैटलिन विसेन ने एचडीआई पर आंकड़ों को लेकर कहा कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में मानव विकास में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई है। 1990 के बाद से, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 9.1 वर्ष बढ़ गई है। स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों में 4.6 वर्ष की वृद्धि हुई है। स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में 3.8 वर्ष की वृद्धि हुई है। भारत की प्रति व्यक्ति जीएनआई में लगभग 287 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट से यह भी पता चला कि 1990 और 2022 के बीच, भारत ने अपने एचडीआई मूल्य में 48.4 प्रतिशत (0.434 से 0.644 तक) की वृद्धि देखी। असमानता के कारण एचडीआई में भारत की हानि 31.1 प्रतिशत मापी गई। असमानता के कारण एचडीआई में दक्षिण एशिया की हानि दुनिया में (उप-सहारा अफ्रीका के बाद) सबसे अधिक थी, इसके बाद प्रशांत क्षेत्र का स्थान था।
मध्यम मानव विकास श्रेणी में नेपाल 146वें और भूटान 125वें स्थान पर भारत के साथ स्थान साझा करते हैं। पाकिस्तान (164) और अफगानिस्तान (182) निम्न मानव विकास श्रेणी में आते हैं। उच्च मानव विकास श्रेणी में चीन 75वें और श्रीलंका 78वें स्थान पर है। 2023-2024 एचडीआर 2021-2022 एचडीआर निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें पहली बार वैश्विक एचडीआई मूल्य में गिरावट देखी गई – लगातार दो वर्षों में। वैश्विक एचडीआई के 2023 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने का अनुमान है। हालांकि, यह प्रगति असमान है। यह चिंता के साथ उजागर करता है कि 20 वर्षों के अभिसरण के बाद, 2020 से सबसे अमीर और सबसे गरीब देशों के बीच अंतर चौड़ा होना शुरू हो गया है।
इन आंकड़ों की स्वाभाविक रूप से जिस तरह से आलोचना की जाती है, उस तरह आलोचना करने के बजाय यदि हम आत्मावलोकन करें और सही सर्वेक्षण की आदत डालें तो हमारे लिए ही बेहतर होगा। हम कागजों में झूठे-सच्चे आंकड़े दर्ज करके देश को विश्व गुरू नहीं बना सकते। कहने को हम कुछ भी कहते रहें, लेकिन हमें दुनिया में कोई माने तब बात है। फिर भी यदि उक्त रिपोर्ट में भारत में मानव विकास सूचकांक में प्रगति दिखाई गई है, तो हमारे लिए अच्छी बात ही मानी जाएगी। भले ही यह बहुत ही मामूली है। और हमें इसमें वृद्धि करने के और प्रयास करने होंगे।
– संजय सक्सेना