ध्रुवीय ज्योति प्रायः ध्रुवों के आकाश में ही दिखाई देती हैं, वे कभी-कभी सौर हवा के उतार-चढ़ाव के कारण नीचे के अक्षांशों पर भी दिखाई दे जाती है
पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर कभी-कभी रात्रि में हरे, लाल, नीले और पीले रंगों की तेज चमक आकाश में दिखाई देती है. इस चमकीली रोशनी को ध्रुवीय ज्योति (Auroras) के नाम से पुकारते हैं. यह ज्योति उत्तरी और दक्षिणी गोलार्थों में देखी जा सकती है. उत्तरी गोलार्ध में चमकने वाली ज्योति को अरोरा बोरीलिस तथा दक्षिणी गोलार्ध की ज्योति को अरोरा ऑस्ट्रालिस (Aurora Australis) कहते हैं. क्या आप जानते हो कि यह ध्रुवीय ज्योति क्या है?
अरोरा बोरीलिस सामान्य रूप से 70 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा अरोरा ऑस्ट्रालिस 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर दिखाई देती हैं. ये ज्योतियां अक्सर 80 से 160 किमी. की ऊंचाई तक दिखाई देती हैं. कभी-कभी यह प्रकाश 1100 किमी. की ऊंचाई तक भी दीखता है. इस ज्योति के कई रूप होते हैं. कभी यह वृत्तखंड की शक्ल में दिखाई देती है, तो कभी किरणों या पंखों के रूप में. जब यह प्रकाश आकाश में चमकता है, तब चटचटाहट की आवाजें पैदा होती हैं. यह ज्योति बड़ी तेजी के साथ घूमती है.
ध्रुवीय ज्योति के बहुत ही सुंदर दृश्य कनाडा की हडसन (Hudson) खाड़ी के आस-पास के क्षेत्रों, उत्तरी स्कॉटलैंड, दक्षिणी नारवे तथा स्वीडन में देखे जा सकते हैं. इस प्रकाश को दक्षिणी अमेरिका और श्रीलंका में भी देखा जा सकता है. एक समय था, जब श्रीलंका के निवासी इस ज्योति को गौतम बुद्ध का संदेश मानते थे.
अब प्रश्न उठता है कि ध्रुवीय ज्योति कैसे पैदा होती है ? वैज्ञानिकों को ध्रुवीय ज्योति के पैदा होने के स्रोत अभी तक पूरी तरह ज्ञात नहीं हैं, लेकिन ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह ज्योति बाहरी वायुमंडल में विद्युत विसर्जन क्रिया से पैदा होती है.
ध्रुवीय ज्योति के पैदा होने के स्रोत जानने का अध्ययन सन् 1716 में शुरू हुआ था. इस वर्ष कई विचित्र ध्रुवीय ज्योतियां यूरोप में दिखाई दी थीं. अंग्रेज खगोलशास्त्री एडमंड हैली (Edmund Halley) ने यह सिद्ध किया कि यह प्रकाश धरती के चुंबकीय क्षेत्र के कारण पैदा होता है. इसके पैदा होने का सर्वमान्य सिद्धांत इस प्रकार है:-
हम जानते है कि सूरज आग का एक गोला है. सूरज में संगलन क्रिया द्वारा निरंतर ऊष्मा पैदा होती रहती है. संगलन प्रक्रिया में पैदा हुए प्रोटोन, इलैक्ट्रोन जैसे आवेशित कण सूर्य से बाहर की ओर प्रवाहित होते रहते हैं. इन आवेशित कणों के प्रवाह को सौर हवा कहते हैं. ये कण अंतरिक्ष में सभी दिशाओं में 480 किमी. प्रति सेकेंड के वेग से गति करते हैं. जब ये कण धरती के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, तो पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों का चुंबकीय क्षेत्र इनके वेग एवं दिशा को बदल देता है. इससे ये कण वायुमंडल में उपस्थित हवा के अणुओं से टकराते हैं. इस टकराव के कारण अणुओं का आयनन हो जाता है जिससे रंग-बिरंगा प्रकाश पैदा होता है. इसी प्रकाश को हम ध्रुवीय ज्योति कहते हैं.
ध्रुवीय ज्योति चुंबकीय तूफानों के समय बहुत अधिक पैदा होती है. पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में अधिक उलट-पलट के कारण चुंबकीय तूफान आते हैं. ध्रुवीय ज्योति सौर-प्रक्रिया के दौरान भी बहुत अधिक बार पैदा होती है.