सेल्यूट करने की प्रथा हमारे इतिहास और संस्कृति में सदा से ही रही है, लेकिन समय-समय पर सेल्यूट करने के तरीकों में परिवर्तन होते रहे हैं. पहले कुछ तरीकों में झुककर या जमीन पर घुटनों के बल माथा टेककर सेल्यूट किया जाता था. इन तरीकों में हाथ को एक विशेष भंगिमा में उठाना होता था. सैनिकों द्वारा सेल्यूट करने में सीधे हाथ को माथे तक या सिर पर रखो टोपी के किनारे तक लाना होता था. सेल्यूट करने का यह तरीका बहुत पुराना नहीं है.
अठारवीं शताब्दी के अंत तक कनिष्ठ अधिकारी वरिष्ठ अधिकारियों को टोप उतारकर सेल्यूट करते थे. आज भी कुछ असैनिक पदाधिकारी (Civilians) इसी तरीके से सेल्यूट करते हैं. यह तरीका शायद मध्ययुग में शुरू हुआ था, जबकि छोटे पदों पर आसीन व्यक्ति राजा-महाराजाओं के सामने अपनी पगड़ी या टोपी सिर से उतारकर आदर व्यक्त करते थे.
सिर से टोपी उतारने के बजाय हाथ उठाकर सेल्यूट देने की प्रथा की शुरुआत 18वीं शताब्दी के बाद ही शुरू हुई थी. इस प्रथा का कारण यह था कि जब सिपाही अपनी बंदूकें छोड़ते थे, तो काले रंग का पाउडर उनके हाथों पर जमा होता था. कालिख लगे हाथों से टोप उतारने का अर्थ होता टोप को खराब करना. अतः टोप को काला होने से बचाने के लिए उन्होंने सेल्यूट करने के तरीके में परिवर्तन कर लिया. इस प्रकार टोप उतारने के बजाय हाथ उठाकर सेल्यूट करने की पद्धति शुरू हो गई.
यदि कोई पदाधिकारी तलवार लिए हुए हो तो वह तलवार की मूंठ को अपने मुंह के पास तक लाकर, दार्यों ओर देखते हुए सेल्यूट करता है. सेल्यूट देने की यह प्रथा भी मध्यकाल में ही शुरू हुई थी. सेल्यूट करने को प्रथा केवल हमारे देश में ही प्रचलित नहीं है, बल्कि संसार के सभी देशों में इसका प्रचलन है.