दिल के लगातार सिकुड़ने से पैदा हुई धमनियों की धड़कन को ही हम नब्ज का चलना कहते हैं. हृदय के सिकुड़ने की क्रिया के बीच एक अंतराल होता है. इस अंतराल के समय महाधमनी (Aorta) की दीवारें सिकुड़ती है. इस सिकुड़ने के दबाव से अतिरिक्त रक्त धमनियों में चला जाता है. सिकुड़ने और फैलने की यह प्रक्रिया धमनियों में एक धड़कन पैदा करती है. यही धड़कन जो शरीर के कई हिस्सों पर महसूस की जा सकती है, नब्ज कहलाती है.
नब्ज कलाई में अंगूठे के ऊपर की धमनी (Artery) पर उंगलियां रखकर महससू की जा सकती है. इसे कनपटी पर हाथ रखकर या कहीं भी जहां धमनी खाल के पास हो महसूस की जा सकती है. यह शिराओं पर हाथ रखने से महसूस नहीं होती, क्योंकि इनमें रक्त धमनियों से छोटी-छोटी शिराओं में से होकर जाता है.
अब प्रश्न उठता है कि डॉक्टर मरीज की नब्ज क्यों देखते हैं?
नर्स या डॉक्टर मरीज से बांह ढीली छोड़कर सीधी रखने को कहते हैं, जिससे अंगूठा ऊपर की तरफ रहे. तब डॉक्टर नब्ज देखता है. ये धड़कनें एक मिनट तक गिनी जाती हैं, क्योंकि एक धड़कन का मतलब एक बार दिल का सिकुड़ना है, इसलिए नब्ज दिल के सिकुड़ने की रफ्तार बता देती है. नब्ज के धड़कने की दर शरीर में रक्त की आवश्यकता पर निर्भर करती है. नब्ज यह बता देती है कि दिल किस दर से धड़क रहा है और रक्त-संचार प्रणाली में दाब की क्या स्थिति है. धड़कन का कम-ज्यादा होना दिल में किसी प्रकार की गड़बड़ी का सूचक है.
नब्ज की धड़कनों की औसत संख्या स्त्रियों में 78 से 82 और पुरुषों में 70 से 72 होती है. नब्ज की असामान्य स्थिति हृदय और रक्त संचार प्रणाली में किसी न किसी गड़बड़ी की सूचक होती है. बच्चों में यह औसत संख्या स्वस्थ बड़ों से अधिक होती है. सात साल के बच्चे की नब्ज की औसत धड़कन एक मिनट में 90 के आसपास होती है. नवजात शिशु में तो यह दर 140 तक जाती है. इसके विपरीत वृद्ध लोगों में यही दर 50-65 तक आ जाती है.
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