आमतौर पर यह देखा गया है कि बच्चे पैदा होने के कुछ महीनों तक बहुत रोते हैं. लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, उसके रोने की अवधि कम होती जाती है और दो वर्ष के बच्चे में यह आदत प्रायः समाप्त हो जाती है. क्या आप जानते हैं कि बच्चे अधिक क्यों रोते हैं?
वास्तविकता तो यह है कि धरती पर पैदा होकर बच्चे का पहला ध्वनि-संदेश रोने से ही शुरू होता है. बच्चे का रोना लगभग पशुओं की संवाद-प्रेषण जैसी वृत्ति है. बच्चा अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को शब्दों में तो व्यक्त कर सकता, अतः वह रोकर ही उन्हें प्रकट करता है. सामान्यतः जब तक बच्चे को कोई तकलीफ न हो वह रोते हुए आंसू नहीं बहाता.
यह एक रोचक बात है कि बच्चे के रोने से यह जाहिर नहीं होता कि वह भूख लगने पर कुछ पाना चाहता है अथवा अस्वस्थ होने की दशा में उसे कोई कष्ट या असुविधा हो रही है.
अधिकांश माताएं अपने बच्चे के रोने से यह पहचान जाती हैं कि वह भूखा है या गुस्से में है अथवा किसी प्रकार के कष्ट से उसे रोना आ रहा है. वे किसी सीमा तक ठीक-ठीक बता देती हैं कि बच्चा क्या चाहता है. उदाहरणार्थ यदि बच्चा भूखा है, तो वह लगातार रोता है और दुलारने-पुचकारने से भी चुप नहीं होता. लेकिन यदि बच्चा पड़े-पड़े ऊब जाने के कारण रो रहा है, तो उसे उठा लेने या कहीं आस-पास घुमाने से वह चुप हो जाता है.
नवीनतम अध्ययन से यह देखा गया है कि यदि माता इस विषय में संवेदनशील हो और बच्चे की मांग को तुरंत आवश्यकतानुसार पूरा कर दे तो पहले एक वर्ष में वह बच्चे का रोना काफी हद तक कम कर सकती है.
चार-पांच मास के होने पर अधिकांश बच्चे कुछ विशेष प्रकार की सांकेतिक आवाजें निकालने लगते हैं, जिसे ‘बुदबुदाना’ कहा जाता है. यह देखा गया हैं कि बच्चे इन विशेष प्रकार की आवाजों का आनंद उठाते हैं.
बच्चे के रोने का कारण हमेशा जानना संभव नहीं है. कई ऐसे अवसर आते हैं कि बच्चा भूखा, थका, बेचैन, ऊबा या डरा हुआ न होने पर भी लगातार रोता है. फिर भी इतना स्पष्ट है कि बच्चा रोकर अपनी विभिन्न इच्छाएं और मांगें प्रकट करता है.