दमा (Asthma) फेफड़ों का जीवन भर चलने वाला ऐसा भयंकर रोग है, जिसमें सांस फूलती है और खांसी के दौरे पड़ते हैं. दमे के तेज और अचानक पड़ने वाले दौरे में रोगी को काफी काफी देर तक सांस नहीं आती. यह सभी मानव जातियों और स्त्री- पुरुष दोनों को ही हो सकता है.
दमा फेफड़ों में श्वसनी नलिकाओं (Bronchial Tubes) की असामान्यताओं के कारण होता है. यह असामान्यताएं श्वसनी पेशिओं के सिकुड़ने, इन पेशियों के चारों तरफ फैले तंतुओं के सूज जाने या छाती में बलगम जम जाने के कारण होती हैं. दमे के मरीज के फेफड़े सिकुड़ जाते हैं.

दमे का सबसे सामान्य प्रकार एलर्जिक ब्रांकियल ऐस्थमा (Allergic Bronchial Asthma) है. यह दमा धूल, पंख, गंध, गोबर इत्यादि और कुछ खाद्य पदार्थों की एलर्जी द्वारा होता है. हे फीवर भी एक प्रकार को एलर्जी है. विभिन्न प्रकार के दमे से शरीर के दूसरे भागों को भी हानि हो सकती है.
दमे का दौरा अकसर अधिक शारीरिक श्रम या गहरे भावनात्मक आघात से उठता है. गला या नाक यदि खराब हो तब भी इसका दौरा पड़ सकता है. मौसम के अचानक परिवर्तन से भी इस रोग के दौरे पड़ते हैं. यदि व्यक्ति एक तापमान से अचानक बहुत बदले हुए तापमान में चला जाए या ऐसे वातावरण में चला जाए जहां आर्द्रता (Humidity) अधिक हो, तब भी दमे का दौरा पड़ सकता है.
चलते हैं. लंबे या जल्दी-जल्दी पड़ने वाले दौरे कमजोर आदमी के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं. 35 से 40 प्रतिशत दमे के बाल रोगी युवावस्था आने पर ठीक हो जाते हैं.
डॉक्टर दमे की पहचान शरीर और विशेष तौर पर खाल के परीक्षणों से करता है. इन परीक्षणों से यह पता लगाया जा सकता है कि मरीज किन चीजों के प्रति अग्रहणशील (Allergic) है. बीमारी के आरंभ में डॉक्टर लोग एपिनेफ्रीन या एफेड्रीन दवा मरीज के लिए प्रस्तावित करते हैं. जिन रोगियों की बीमारी गंभीर हो जाती है, वे ACTH या कार्टिसोल (Cortisol) का सेवन करते हैं. कुछ डॉक्टर उन चीजों के, जिनके प्रति मरीज अग्रहणशील होता है, इंजेक्शन या छोटे डोज भी देते हैं और धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ाते जाते हैं, जिससे कि इन चीजों के प्रभाव के खिलाफ रोगी के शरीर में प्राकृतिक अवरोधक शक्ति पैदा हो जाए. कभी-कभी दमे के रोगी के लिए ऑक्सीजन आवश्यक हो जाती है. दमे के दौरों से बचने के लिए ऐसी चीजों से बचना चाहिए, जिनके प्रति रोगी अग्रहणशील है और ऐसे मौसम से भी बचना चाहिए, जो इस रोग को बढ़ाता है.