पीएम मोदी ने कहा कि आज़ादी के बाद पवित्र ‘सेंगोल’ को अगर उचित सम्मान दिया जाता, तो अच्छा होता, लेकिन इसे प्रयागराज के आनंद भवन में ‘छड़ी’ के तौर पर प्रदर्शित करने के लिए रख दिया गया। उन्होंने कहा कि 1947 में अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक को लेकर सवाल खड़ा हुआ था और सी राजगोपालाचारी और अधीनम के मार्गदर्शन में ‘सेंगोल’ के माध्यम से प्राचीन तमिल संस्कृति से सत्ता हस्तांतरण का पवित्र जरिया खोजा गया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर 1947 में तिरूवदुतुरई के अधीनम ने विशेष ‘सेंगोल’ बनाया था। उन्होंने कहा कि आज उस दौर की तस्वीरें हमें तमिल संस्कृति और आधुनिक लोकतंत्र के रूप में भारत की नियति के बीच गहरे भावनात्मक बंधन की याद दिला रही हैं। आज इतिहास के पन्नों से इस गहरे बंधन की गाथा जीवंत हो उठी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें यह भी पता चला कि इस पवित्र प्रतीक के साथ कैसा व्यवहार किया गया।
‘सेंगोल’ के सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बताने वाले सभी दावे ‘फर्जी’: जयराम रमेश
मोदी ने राजगोपालाचारी और अधीनम की दूरदर्शिता की सराहना करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि ‘सेंगोल’ ने वर्षों की गुलामी के हर प्रतीक से स्वतंत्रता की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा कि ‘सेंगोल’ को आखिरकार लोकतंत्र के मंदिर में अपना वह स्थान मिल रहा है, जिसका वह हकदार है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर खुशी जताई कि भारत की महान परंपराओं के प्रतीक ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। मोदी ने कहा कि ‘सेंगोल’ सरकार के लोगों को याद दिलाएगा कि उन्हें लगातार ‘कर्तव्य पथ’ पर चलना है और जनता के प्रति जवाबदेह रहना है। कांग्रेस ने शुक्रवार को दावा किया था कि इस बात का कोई दस्तावेज़ी सबूत नहीं है कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालचारी और जवाहरलाल नेहरू ने ‘सेंगोल’ को ब्रिटेन से भारत को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बताया हो। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा था कि ‘सेंगोल’ के सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बताने वाले सभी दावे ‘फर्जी’ हैं।