लेखक- डॉ. आनंद प्रकाश शुक्ल
जाति कोल समाज का सम्मेलन होने जा रहा है जिसमें भारत सरकार के गृह मंत्री अमित शाह आएंगे। शबरी जयंती के अवसर पर कोल समाज का यह महा सम्मेलन कई मायनों में महत्वपूर्ण हो गया है। यह प्रयास प्रदेश की शिवराज सरकार का जिसकी सब ओर प्रशंसा हो रही है। खास तौर पर प्रदेश की जनजातीय समुदाय में। दरअसल मध्य प्रदेश देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक जनजातीय समुदाय निवास करता है। इस समुदाय की अत्यंत प्राचीन और गौरवपूर्ण सांस्कृतिक पहचान है, जिसमें अध्यात्म और शूरवीरता भी शामिल है। भगवान श्री राम की भक्त शबरी उसी गौरवमयी परंपरा की मूल संवाहक है जिसको आज की दुनिया में बड़े आदर और श्रद्धा के साथ गुणगान किया जाता हैं। ऐसी ओजपूर्ण और गौरवमयी परंपरा को एक बार फिर से स्थापित करने का काम प्रदेश की शिवराज सरकार कर रही है। प्रदेश सरकार के इन प्रयासों से एक ओर जहां जनजातीय वर्ग के मौजूदा पीढ़ी में अपनी संस्कृति के प्रति आदर बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर जनजातीय समुदाय में महिला सशक्तिकरण को बल भी मिलेगा। इसके साथ ही आने वाली युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति पर गौरव करने की अवसर मिलेगा। ऐसे प्रयासों को केवल राजनीतिक चश्मे से न देखते हुए यदि परंपरा और सांस्कृतिक ढंग से देखा जाए तो जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करने का यह बड़ा और अनोखा प्रयास है।
चुंकि भक्त शबरी के जन्म दिवस के अवसर पर यह महासम्मेलन आयोजित हो रहा है तो उसकी चर्चा आवश्यक है। शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त थीं और मतंग मुनि की परम शिष्या । उसके बचपन का नाम श्रवणा था और वह मूलतः शबर जाति की थी। मुनि आश्रम में रहकर शबरी ने अपने सेवा कार्य से मुनियों को प्रसन्न किया, जिससे प्रभावित होकर मतंग मुनि ने उसे बेटी कहकर संबोधित किया और आश्रम में ही रहने की जगह दे दिया। लंबे समय बाद जब मतंग मुनि बूढ़े हो गये और जीवन का अंतिम काल आया तब उन्होंने शबरी को समझाते हुए कहा कि- शबरी तुम यहीं रहकर प्रतीक्षा करना, प्रभु श्री राम खुद आयेंगे तुमसे मिलने । अपने गुरु की बात को शबरी माता ने अपने मन में रखा और नित्य भक्ति को और भी प्रगाढ़ करती गईं। आखिरकार भगवान राम एक दिन शबरी से मिलने आये और स्वागत में शबरी के हाथों मिले जूठे बेर भी खाए । शबरी माता के जूठे बेर
खाकर भगवान ने निस्वार्थ प्रेम को स्थापित किया जो कि सनातन काल से आदर्श और श्रेष्ठ कथाओं में उदाहरण के रूप में भक्तों को श्रवण कराया जाता है। रामचरित मानस में उल्लेखित शबरी सचमुच श्रद्धा, भक्ति और धैर्य का अनूठा उदाहरण है। राम ने शबरी को नवधा भक्ति के विषय में विस्तार से बताया और उसको जीवन-मरण के बंधन से मुक्त कर दिया। गौर करने वाली बात यह है कि भगवान राम को वनवास के समय सबसे अधिक स्वभाविक प्रेम, सम्मान और समर्थन जनजातीय समुदाय से ही मिला था
शबरी के प्रसंग में एक बात स्मरण हो रही है कि मध्य प्रदेश में प्रमुख रूप से भील, कोल और गौड़ जनजातियां रहती हैं जिसमें प्रदेश के उत्तर- पूर्व अर्थात सतना, रीवा, सीधी- सिंगरौली आदि जिलों में कोल समुदाय के लोग अधिक संख्या में पाये जाते हैं। ऐसे में महासम्मेलन के राजनीतिक अर्थ निकलना स्वभाविक है।
अब चर्चा प्रदेश सरकार के उन कदमों की जो कि जनजातीय समुदाय के कल्याण के लिए निरंतर उठाए जा रहे हैं जिससे उनके आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा को और भी बल मिल रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण और रोजगार के साथ आर्थिक मोर्चे पर भी राज्य की शिवराज सरकार ने जनजातीय समुदाय के कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ाने का काम किया है। यही कारण है कि प्रदेश की जनजातीयों में सांस्कृतिक नवचेतना का संचार हो रहा है। राज्य सरकार के निर्णयों पर नजर डालें तो प्रमुख रूप से 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस पर जनजातीय गौरव दिवस घोषित करके जनजातीय समूह के योगदान को स्थापित करने का काम किया है। इसके साथ ही देश का पहला आधुनिक रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम से करके जनजातीय समुदाय की महिला वर्ग को सम्मानित करने का काम किया है। इतिहास में रानी कमलापति के योगदान और बलिदान को कौन नहीं जानता। राज्य की शिवराज सरकार ने वनों का अधिकार जनजातियों के हाथों में देने के लिए पेसा कानून लागू किया है इसके साथ ही लगभग साढ़े आठ सौ वन ग्राम को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने का ऐतिहासिक निर्णय भी लिया है। जनजातीय बहुल क्षेत्रों में परंपरागत औषधीय पौधों के उत्पाद, विपणन एवं विक्रय के लिए देवारण्य कार्यक्रम की शुरूआत की है। कोरोना काल से बैगा, भारिया और सहरिया परिवार की महिलाओं को आहार अनुदान योजना के अंतर्गत लगभग ढ़ाई लाख परिवारों को प्रति माह स्वास्थ्य एवं पोषण के लिए एक हजार रूपये
निरंतर दिये जा रहे हैं। सिकल सेल की रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत अत्यंत तेजी से स्वास्थ्य कार्यक्रम के कैंप लगाकर चिंहित करने का काम किया जा रहा है। इसके साथ ही समुदाय में जनजागरूकता लाने का अभियान भी चलाया जा रहा है। वन प्रांतर में रहकर दैनिक काम के समय पावों में सुरक्षा के लिए चरण पादुका कार्यक्रम के तहत एक जोड़ी जूते पहनाने का काम भी प्रदेश सरकार ने किया है।
इसके अलावा भी जनजातीय समुदाय के युवाओं को रोजगार के लिए भटकना ना पड़े या घर छोड़कर बाहर, पलायन ना करना पड़े इसके लिए प्रमुख रूप से राशन आपके द्वार योजना चलाई जा रही है। इसके अलावा भी इस वर्ग के युवाओं में शिक्षा को लेकर किसी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े इसकी एक नहीं अनेक योजनाएं एकलव्य छात्रावासों का संचालन आदि किया जा रहा है। प्रदेश में टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना, भगवान विरसा मुंडा स्व रोजगार योजना जैसी योजनाओं को प्रभावी ढंग से क्रियांवित करने का काम प्रदेश की शिवराज सरकार ने किया है। इसके साथ ही आवासीय समस्या को दूर करने के लिए जनजातीय समुदाय में जो वन बंधु किसी कारण से रह गए थे उनके आवेदन लेकर पट्टा देने का काम राज्य सरकार ने किया है। इस प्रकार देखा जाये तो जो मूलभूत आवश्यकता है रोटी, मकान आदि की वह राज्य सरकार पूरा करके एक बेहतर जीवन की ओर आगे बढ़ने का काम कर रही है।
इसके अलावा इन दिनों इस बात की चर्चा हो रही है कि इस वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं तो इस आयोजन के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। यदि है तो यह आयोजन सार्थक ही कहा जायेगा क्योंकि देश की आजादी के बाद इस समुदाय को उनका सही और सार्थक अधिकार नहीं मिला था। गौर करने वाली बात यह है कि देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के सबसे बड़े रणनीतिकार अमित शाह का आगमन जरूर कुछ न कुछ नई दिशा देगा, ऐसा विश्वास किया जा रहा है। श्री शाह पहले ही कह चुके हैं कि आजादी के संघर्ष में जनजातीय जननायकों के योगदान को पर्याप्त सम्मान नहीं मिल पाया था। ऐसे मैं यह कोल महासम्मेलन आगामी दिनों में जनजातीय समुदाय के लिए नई-दिशा तय करेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)