नेपाल में एक बार फिर राजनीतिक संकट गहरा गया है. राष्ट्रपति विधा देवी भंडारी ने संसद को भंग कर दिया है मध्यावधि चुनाव इस साल नवंबर में होंगे. हालांकि, विपक्षी दलों ने 149 सांसदों के समर्थन का दावा कर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री बनाने का आग्रह राष्ट्रपति से किया था. उधर केपी शर्मा ओली भी लगभग 150 सांसदों के समर्थन का दावा कर रहे थे. इन दोनों दावों के बीच राष्ट्रपति ने मध्यावधि चुनाव का फैसला लिया. निश्चित तौर पर आने वाले समय में नेपाल में राजनीतिक गतिरोध और बढ़ेगा नेपाल राजनीतिक, भौगोलिक और जातीय तौर पर गंभीर रूप से बट चुका है. नेपाल में बेशक राजशाही खत्म हो गई, लोकतंत्र आ गया लेकिन नेपाल की जनता का भला आजतक नहीं हुआ है. नेपाली लोकतंत्र ने सत्ता में आए विभिन्न दलों के नेताओं को भ्रष्ट जरूर किया है.
भौगोलिक रूप से चीन और भारत के बीच में होने के कारण नेपाल शुरू से ही महत्वपूर्ण रहा है, नेपाल का भौगोलिक महत्व चीन के लिए भी है। और भारत के लिए भी है, लेकिन यह सच्चाई है कि नेपाल-चीन सीमा पर दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण आर्थिक गतिविधियों के लिए नेपाल भारत पर आज भी निर्भर है. नेपाल महत्वपूर्ण सप्लाई लाइन आज भी भारत है. चीन के तमाम दावों के बावजूद चीन-नेपाल सीमा पर दुर्गम भौगोलिक परिस्थतियां नेपाल-चीन संबंधों को मजबूत होने में बाधा बनी रही है. यही कारण है कि नेपाल के अंदर कई चीन समर्थक ताकतों की भारत विरोधी साजिश अभी तक कामयाब नहीं हो पाई हैं. नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए खतरनाक है, नेपाल की राजनीतिक यथार्थ को पूरी तरह से समझने में भारत विफल रहा है. यही कारण है कि नेपाल में चीन की मजबूत घुसपैठ हुई. अभी मामले की गंभीरता को देखते हुए भारत को नेपाल में सारे पक्षों के साथ संपर्क तेज कर देना चाहिए. भारत की नेपाल नीति की बड़ी खामी यह रही है कि एक वक्त में भारत नेपाल के एक पक्ष के साथ खड़ा रहा है. भारत ने कभी नेपाली कांग्रेस की मदद की, तो कभी प्रचंड की मदद की, तो कभी केपी शर्मा ओली की मदद कर दी. प्रचंड और ओली दोनों कम्युनिस्ट नेता भारत से समय समय पर मदद लेते रहे. लेकिन दोनों के संबंध चीन से भी मधुर रहे हैं. भारत के हित में यहीं है कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता आए. दरअसल, नेपाल के क्षेत्रिय और जातीय विभाजन को लेकर भी भारत कंफ्यूज रहा. एक वक्त यह भी आया कि भारत ने नेपाल में खुलकर मधेसियों का साथ दिया. इससे नेपाल की पहाड़ी आबादी भारत के खिलाफ हो गई. ये पहाड़ी आबादी उच्च हिंदू जातियों से संबंधित है.
अभी यह चर्चा जोरों पर है कि केपी शर्मा ओली, जो प्रचंड के विद्रोह के कारण राजनीतिक संकट में फंस गए, भारत की मदद ले रहे हैं. यही ओली ने पीछे चीन के इशारे पर भारत से सीमा विवाद खड़ा कर दिया था. नेपाल की राजनीति की एक सच्चाई यही है कि एक नेता अगर भारत के साथ होता है तो वहां का दूसरा मजबूत नेता चीन के साथ हो जाता है. अगर ओली भारत की मदद ले रहे हैं, प्रचंड चीन के संपर्क में होंगे, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का विवाद इसके गठन के साथ शुरू हो गया था. नेपाल के दो अलग-अलग कम्युनिस्ट गुटों ने एकीकरण तो कर लिया, लेकिन दोनों गुटों के नेता लीडर केपी शर्मा ओली और प्रचंड के बीच कभी नहीं बनी आखिरकार दोनों अलग-अलग हो गए. इस बार जब नेपाल में ओली और प्रचंड के बीच विवाद के कारण राजनीतिक संकट हुआ तो चीन ने प्रचंड की मदद करने की कोशिश की. इससे ओली नाराज हो गए और अपना भारत विरोध छोड़ भारत से नजदीकी बनाने लगे. यह भी सच्चाई है कि ओली विश्वसनीय नहीं है वे कभी भी अपने स्वार्थ के लिए पलटी मार सकते हैं.
नेपाली राजनीति में भ्रष्टाचार काफी है. नेपाल के नेताओं और सांसदों पर लगातार राजनीतिक संकटों के दौरान पैसे लेने के आरोप लगते रहे हैं. नेपाल की राजनीति को भ्रष्ट करने में चीन की अहम भूमिका रही है. चीन की घुसपैठ नेपाली राजनीतिक दलों में जबरदस्त है. नेपाल चीन के बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा बन चुका है. बेल्ट एंड रोड पहल में नेपाल को शामिल करवाने में अहम भूमिका केपी शर्मा ओली और प्रचंड दोनों की रही है. चीन नेपाल में बेल्ट एंड रोड पहल के तहत कई प्रोजेक्ट शुरू कर चुका है.
वैसे में, भारत को यह यथार्थ स्वीकार करना होगा कि भारत के पड़ोसी मुल्क में चीन काफी मजबूत हो चुका है। चीन की शॉप पॉलिसी का प्रभाव नेपाल में दिख रहा है. नेपाल के राजनीतिक तंत्र को पैसे के बल पर चीन ने खासा अपने प्रभाव में ले लिया है, नेपाल में भारत विरोधी कार्रवाई को चीन आगे भी अंजाम देता रहेगा. बदलती परिस्थितियों में भारत को नेपाल के तमाम मजबूत राजनीतिक और जातीय गुटों के साथ संपर्क साधने होंगे. लेकिन फिलहाल भारत की सक्रियता नेपाल में बहुत ज्यादा नजर नहीं आ रही है. वैसे भारतीय हितों के समर्थक नेपाल में मौजूद है.
(लेखक- संजीव पांडेय)