अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की अध्यक्षता में जलवायु परिवर्तन पर दो दिवसीय आभासी बैठक हाल ही में संपन्न हुई, जिसमें दुनिया भर के दर्जनों नेताओं ने शिरकत बाइडन के पहले वाले प्रशासन ने खुद को पेरिस समझौते अलग कर लिया था और कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण के इरादे से बनाए गए कई घरेलू नियमों को ध्वस्त कर दिया था. बाइडन ने सन 2030 तक अमेरिका में उत्सर्जन कटौती के स्पष्ट लक्ष्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है. जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका की यह नई ऊर्जा स्वागत करने लायक है, लेकिन इसे पूरी दुनिया में तब तक गंभीरता से नहीं लिया जा सकता, जब तक इसके लिए ऐसी कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं की जाती है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट बताती है कि जी-20 समूह के देश जो विश्व में ग्रीन हाउस गैस के 80 फीसद उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी है, वे अभी पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में पीछे हैं. केवल भारत ही एक ऐसा देश है जो अपने 2030 लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है. भारत में वैश्विक उत्सर्जन का केवल 4 फीसद ही उत्सर्जन होता है, विश्व के दो सबसे बड़े प्रदूषक देश अमेरिका और चीन है. ये दोनों देश दुनिया का 40 फीसद का करते हैं. अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का उत्सर्जन बहुत कम है.
केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि वह 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में तीस से पैंतीस फीसदी की कटौती की जाएगी. ध्यातव्य है कि यह कमी साल 2005 को आधार मानकर की जाएगी सरकार ने यह भी फैसला किया है कि 2030 तक होने वाले कुल बिजली उत्पादन में 40 फीसदी हिस्सा कार्बन रहित ईंधन से होगा. भारत लगातार साफ-सुथरी ऊर्जा के लिए लगातार बड़ा कदम उठा रहा है. विकासशील देशों में जहां विश्व की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी निवास करती हैं. 1751 से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जित भंडार में सिर्फ 20 प्रतिशत का योगदान किया है विकासशील देशों जैसे कि भारत, चीन, ब्राजील व दक्षिण कोरिया अभी भी प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में विकसित देशों से कई गुना पीछे है. विश्व बैंक के अनुसार, जहां विकसित देशों में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 13 टन है, विकासशील देशों में यह 3 टन से भी कम है. अमेरिका में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन भारत की तुलना में 20 गुना अधिक है, विश्व में सिर्फ 15 प्रतिशत जनसंख्या के साथ अमीर देश कार्बन डाइऑक्साइड के 47 प्रतिशत से अधिक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है.
भारत ने वर्ष 2022 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का उपादन करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य, स्मार्ट शहरों, विद्युत वाहनों ऊर्जा दक्षता, पहलों तथा अप्रैल 2022 तक भारत स्टैज चार से स्टेज-पांच उसर्जन मानदंडों को लागू करने जैसे कार्यों को सक्रियता पूर्वक शुरू किया गया है, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम से कम किया जा सके. आज भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 74 गीगावाट से अधिक है जिसमें 25 गोगावाट सौर ऊर्जा भी शामिल हैं. अगर वन से संबंधित आकड़ों पर गौर करें त भारत का वन और वृक्ष क्षेत्र 2015 आंकलन की तुलना में एक प्रतिशत बढ़ा है. एलईडी वितरण के लिए उन्ञ्चला जैसी योजना ने 320 मिलियन को संख्या को पार कर लिया है, जबकि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं के लिए 63 मिलियन से भी अधिक परिवारों को स्वच्छ कुकिंग चूल्हों का वितरण किया जा चुका
उल्लेखनीय है कि गुजरात के कच्छ जिले नया हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा पार्क देश का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन पार्क हैं. उम्मीद है कि यहां नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन 30/ गीगावॉट तक पहुंचेगा लगभग 72,600 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस पार्क में पवन और सौर ऊर्जा संचय के लिए एक समर्पित हाइब्रिड पार्क क्षेत्र विकसित होगा. इसके साथ ही पवन ऊर्जा पार्क की गतिविधियों के लिए भी यहां एक विशेष क्षेत्र होगा. सर्वविदित है कि सूर्य की रोशनी ही सौर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत होती है. इस दृष्टि से भारत अन्य देशों से भाग्यशाली स्थिति में है. यहां वर्ष के औसतन तीन सौ दिन सूर्य की रोशनी ठीक ठाक पड़ती है. इस पैमाने पर भारत, विश्व के ध्रुवीय देशों, विषुवत रेखीय और उन अन्य भौगोलिक प्रदेशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है, जहां सूर्य की रोशनी इतनी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होती. एक अनुमान के अनुसार भारत के भौगोलिक भाग पर पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है.
(लेखक- लालजी जयसवाल)