Friday, 16 May

रांची
सुप्रीम कोर्ट ने पांचवीं जेपीएससी नियुक्ति से संबंधित मामले में सुनवाई करते हुए झारखंड सरकार को दिव्यांग उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों ने मेरिट के आधार पर सामान्य कैटेगरी की सीटें हासिल की हैं, तो उनकी आरक्षित सीटों को अन्य योग्य दिव्यांग उम्मीदवारों को दिया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला कपिलदेव हंसदा और ज्योति कुमारी की अपील पर सुनाया गया, जिन्होंने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की पांचवीं परीक्षा (2013) में आरक्षण के लाभ से वंचित रहने का आरोप लगाया था। परीक्षा में 272 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे, जिनमें से एक पद दृष्टिबाधित, तीन पद श्रवण एवं वाणी बाधित और एक पद लोकोमोटर दिव्यांगता वाले उम्मीदवारों के लिए आरक्षित था।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि चार दिव्यांग उम्मीदवारों ने मेरिट के आधार पर सामान्य कैटेगरी में सफलता प्राप्त की, लेकिन उनकी आरक्षित सीटों को अन्य योग्य दिव्यांग उम्मीदवारों को नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ‘पर्सन्स विद डिसेबिलिटी (इक्वल ऑपर्च्युनिटी, प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स एंड फुल पार्टिसिपेशन) एक्ट, 1995 की धारा 33 और 36 का हवाला देते हुए झारखंड सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं के दावों पर दो महीने के भीतर विचार करें।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि यदि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों ने मेरिट के आधार पर सामान्य कैटेगरी की सीटें प्राप्त की हैं, तो उनकी आरक्षित सीटों को अगले योग्य दिव्यांग उम्मीदवारों को दिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी उप-श्रेणी में योग्य उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, तो आरक्षित पदों को अन्य उप-श्रेणियों में बदला जा सकता है। इसके अलावा अदालत ने ज्योति कुमारी, जो पहले से ही ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर के पद पर नियुक्त हैं, को विकल्प दिया कि वह जेपीएससी की पांचवीं परीक्षा के आधार पर झारखंड प्रशासनिक सेवा में पद स्वीकार कर सकती हैं या अपने वर्तमान पद पर बनी रह सकती हैं। लेकिन वह वेतन निर्धारण को छोड़कर किसी भी अतिरिक्त लाभ के बिना उस बैच के साथ वरिष्ठता की हकदार होगी। इसके साथ ही अदालत ने उक्त याचिका निष्पादित कर दी है।


Source : Agency

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