नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की नियुक्ति को ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए झटका भी माना जा रहा है। इसके दो कारण हैं। पहला तो तोमर को सिंधिया का राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। दूसरा यह भी कि केंद्रीय मंत्री सिंधिया की तरह तोमर भी ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से आते हैं।
मध्य प्रदेश में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी बिसात बिछाना शुरू कर दी है। प्रदेश के हर क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए अलग से रणनीति बनाई जा रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने खुद प्रदेश के चुनाव प्रबंधन की कमान अपने हाथों में ले रखी है। दिल्ली से लेकर राजधानी भोपाल तक उन्होंने खुद मोर्चा संभाल लिया है। इस बीच हाईकमान ने क्षत्रपों को कंट्रोल करना शुरू कर दिया है। चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को देकर हाईकमान ने साफ कर दिया है कि इन चुनावों में वही होगा जो दिल्ली दरबार चाहेगा। मोदी-शाह के करीबी तोमर की इस नियुक्ति ने न केवल सिंधिया बल्कि कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल और नरोत्तम मिश्रा जैसे तमाम क्षत्रपों को एक झटका लगा है। क्योंकि ये नेता इस बड़ी जिम्मेदारी के लिए आतुर नजर आ रहे थे। तोमर के जरिए भाजपा हाईकमान सीधे मध्यप्रदेश के घटनाक्रमों पर नजर रख सकेगा।
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की नियुक्ति को ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए झटका भी माना जा रहा है। इसके दो कारण हैं। पहला तो तोमर को सिंधिया का राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। दूसरा यह भी कि केंद्रीय मंत्री सिंधिया की तरह तोमर भी ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से आते हैं। पार्टी चुनाव संबंधित समितियों में इस क्षेत्र से और कितने नेताओं को जगह देगी, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि तमाम सर्वे में ग्वालियर-चंबल में बीजेपी की हालत कमजोर बताई जा रही है। इसके अलावा सिंधिया के लिए सबसे बड़ी समस्या है कि, अहम मौकों पर पार्टी के पुराने नेता उनके खिलाफ अक्सर गोलबंद हो जाते हैं। स्थानीय निकाय चुनावों के दौरान यह देखने को मिला था। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर यह आशंका जताई जा रही है कि सिंधिया-समर्थक विधायक और मंत्रियों के टिकट कट सकते हैं। ऐसे में सिंधिया के लिए आने वाले दिनों में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
सरकार से लेकर संगठन तक में रखा गया सिंधिया समर्थकों का ध्यान
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को बीजेपी में शामिल हुए करीब तीन साल हो गए हैं, वापस चुनाव आ गए हैं। ग्वालियर-चंबल में भाजपा के पुराने नेता सिंधिया समर्थकों को अपना नहीं पाए हैं। भाजपा ने अपने पुराने नेताओं को तरजीह न देते हुए सिंधिया समर्थकों को न केवल अहम जिम्मेदारी दी है, बल्कि उन्हें कई समितियों और मंडल में जगह भी दी है।
सिंधिया के सवाल पर प्रदेश के राजनीति के जानकारों का कहना है कि सिंधिया को लंबी राजनीति करनी है। वो 2023 के चुनावों में किसी भी पद की शर्त को लेकर या 4-5 उम्मीदवारों के टिकट को लेकर सीधे नेतृत्व की आंखों में खटकने का कोई कदम नहीं उठाएंगे। उनका ध्यान विधानसभा चुनावों के साथ-साथ आगामी लोकसभा चुनावों पर भी है। जहां तक बात उनके समर्थक नेताओं की है तो उन्हें 2020 में पार्टी से जुड़ने के बाद सम्मानित पद दिए गए। जिसे सरकार में जगह नहीं मिली उसे संगठन में जगह दी गई। ऐसा आगे भी जारी रह सकता है। इसी के साथ उन्हें अभी बीजेपी के संगठन को समझना होगा। कांग्रेस जैसा व्यवहार उन्हें बीजेपी में नहीं मिल सकता है।
पार्टी के लिए कमजोर कड़ी बन रहा ग्वालियर-चंबल दुर्ग
सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर दोनों ही दिग्गज नेता ग्वालियर-चंबल इलाके से आते हैं, लेकिन पार्टी की हालत इस क्षेत्र में काफी खराब नजर आ रही है। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कुल 34 विधानसभा सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में 34 में से सबसे ज्यादा 26 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं। बीजेपी को सिर्फ 7 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। सिर्फ चंबल की ही बात करें तो यहां की 13 में से 10 सीटों पर कांग्रेस पार्टी की जीत हुई थी। सिंधिया के पार्टी से जुड़ने के बाद भी बीजेपी को कुछ खास फायदा इस इलाके में मिलते नहीं दिखा। बल्कि ग्वालियर निगम की सीट भी बीजेपी के हाथ से फिसल गई। ऐसे में नरेंद्र सिंह तोमर पर अहम जिम्मेदारी मिलने के साथ ये जिम्मेदारी भी होगी कि वो अपने इस इलाके में पार्टी की स्थिति को सुधारें और इस कमजोर दुर्ग को मजबूत करें। आने वाले दिनों में सिंधिया को भी इस इलाके में सक्रिय होने के लिए कहा जा सकता है।