श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर में बढ़ती आतंकी गतिविधियों के बीच सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि सीआरपीएफ के जंगल वारियर्स (कोबरा बटालियन) की जल्द तैनाती क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी अभियानों में काफी मददगार हो सकती है. दरअसल, सुरक्षा एजेंसियों को इस बात की चिंता है कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए नरसंहार में शामिल आतंकवादियों का अभी तक पता नहीं चल पाया है.
इस संबंध में सीआरपीएफ के पूर्व महानिदेशक सुजॉय लाल थाउसेन ने ईटीवी भारत से कहा, “कोबरा आतंकी गतिविधियों से लड़ने में काफी सक्षम है. उन्हें फिर से ट्रेन किया जा सकता है और वे आतंकवाद विरोधी अभियानों में जम्मू-कश्मीर पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की मदद कर सकते हैं.”
कोबरा बटालियन
कोबरा बटालियन, जिसे कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन के नाम से भी जाना जाता है, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की एक स्पेशल यूनिट है. यह मुख्य रूप से गुरिल्ला और जंगल युद्ध की रणनीति में अपनी विशेषज्ञता के लिए जानी जाती है, खासकर वामपंथी उग्रवाद (LWE) से निपटने में. कोबरा को जंगल के इलाकों में ऑपरेशन पर ध्यान केंद्रित करने के कारण ‘जंगल योद्धा’ भी कहा जाता है.
थाओसेन ने कहा, “नक्सल इलाकों में अपनी प्रतिबद्धता से मुक्त होने के बाद कोबरा आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल हो सकेंगे. झारखंड, ओडिशा, बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में कोबरा की प्रतिबद्धता कुछ साल पहले की तुलना में बहुत कम है. उन सभी इकाइयों को जम्मू-कश्मीर के माहौल के हिसाब से फिर से प्रशिक्षित किया जा सकता है और आतंकवादियों से लड़ने के लिए जम्मू-कश्मीर में तैनात किया जा सकता है.”
जम्मू-कश्मीर में एक कंपनी पहले ही प्रशिक्षित हो चुकी है
इससे पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान में कोबरा बटालियन को तैनात करने की पहल की गई थी. हालांकि, इसे आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए नहीं रखा गया. सीआरपीएफ महानिदेशक के रूप में थाउसेन के कार्यकाल के दौरान एक कोबरा कंपनी को अनुकूलन प्रक्रिया के लिए जम्मू-कश्मीर भेजा गया था.
थाउसेन ने कहा, “अपने कार्यकाल के दौरान मैंने जम्मू-कश्मीर में एक कोबरा कंपनी भेजी है. चूंकि नक्सल क्षेत्र में हमारी भागीदारी कम हो रही थी, इसलिए मैंने अपने कार्यकाल के दौरान जम्मू-कश्मीर में एक कंपनी को परिचित कराने के लिए भेजा था.”
हालांकि, स्थानीय प्राधिकारी और स्थानीय पुलिस की इच्छा होने पर ऐसे केंद्रीय बलों को तैनात किया जाता है. थाउसेन ने कहा, “अगर स्थानीय प्राधिकारी और स्थानीय पुलिस मांग करती है, तो केंद्रीय बलों को विशिष्ट क्षेत्र में तैनात किया जाता है.”
तैनाती प्रक्रिया
तैनाती प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए थाउसन ने कहा कि तैनाती प्रक्रिया किसी विशिष्ट क्षेत्र में आतंकवादियों की गतिविधियों पर निर्भर करती है.उन्होंने कहा, “यह इस बात पर निर्भर करता है कि जम्मू-कश्मीर में कितनी यूनिट की आवश्यकता है. तैनाती प्रक्रिया जिलों या क्षेत्रों में आतंकवादी गतिविधियों पर भी निर्भर करती है.तैनाती आतंकवादियों की कुल संख्या की गणना पर निर्भर करती है.”
पहलगाम में आतंकवादियों का ठिकाना
सुरक्षा बलों का मानना है कि पहलगाम हमले में शामिल आतंकवादी प्राकृतिक गुफाओं और वन क्षेत्रों में छिपे हो सकते हैं. पिछले 11 दिनों से बैसरन घाटी, तरानाउ हप्तगुंड, दावरू और अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों के घने जंगलों में सघन तलाशी अभियान चल रहा है.
कोबरा एक गेम चेंजर साबित हो सकता है
भारत के सुरक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि कोबरा बल की तैनाती जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद विरोधी अभियान में गेम चेंजर साबित हो सकती है. प्रसिद्ध सुरक्षा विशेषज्ञ (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर बीके खन्ना ने कहा, “बटालियन (कोबरा) को जंगल में युद्ध करने का अनुभव है. एक बार जब यह जम्मू-कश्मीर के इलाकों से लैस हो जाएगा, तो सुरक्षा एजेंसियों को अधिकतम लाभ मिलेगा.”
कोबरा नक्सलियों से लड़ रहा है
कोबरा यूनिट को नक्सली आंदोलन की रीढ़ तोड़ने का क्रेडिट दिया जाता है. यह सीआरपीएफ की एक विशेष गुरिल्ला युद्ध कमांडो यूनिट है, जिसे जंगल के इलाकों में लड़ने में व्यापक विशेषज्ञता हासिल है.
कोबरा यूनिट के कमांडो मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं. इनमें से ज़्यादातर कोबरा टीमें नक्सल हिंसा से प्रभावित विभिन्न राज्यों में तैनात हैं. साथ ही, कोबरा की कुछ यूनिटें आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में भी तैनात की गई हैं.
Source : Agency