यूनान (ग्रीक) के चिकित्सक हिपोक्रेटिस (Hippocrates) को ‘दवाओं का जनक’ (Father of Medicine) माना जाता है. उसका जन्म कोस (Cos) द्वीप में हुआ था जहां उसने वयस्क होने पर दवाओं के एक स्कूल की स्थापना की. वह ईसा पूर्व 460 से ईसा पूर्व 377 तक जीवित रहे डॉक्टर बनने वाले छात्र आज भी अपने कार्यों में नैतिक नियमों का पालन करने की जो शपथ लेते हैं उसे हिपोक्रेटिक शपथ (Hippocratic Oath) के नाम से जाना जाता है.
हिपोक्रेटिस के दवाओं के स्कूल में डॉक्टरों को सिखाया जाता था कि बीमारियों का कारण शरीर के अंगों का भलोप्रकार कार्य नहीं करना है. भूत-प्रेत या जंतर-मंतर आदि के कारण नहीं होती जैसा कि उस समय अंध विश्वास किया जाता था. लेकिन हिपोक्रेटिस और उसके अनुयायियों को मानव शरीर के अंदरूनी ढांचे के बारे में जानकारी नहीं थी. उनका विश्वास था कि बीमारियां शक्ति देने वाले तरल-रक्त, पित्त, कफ और काले पित्त के असंतुलन के कारण होती हैं. हिपोक्रेटिस ने यह भी बताया कि मलेरिया और कुछ दूसरी बीमारियां विशेष प्रकार के स्थानों तथा जलवायु की विशेष दशाओं के कारण होती हैं.
हिपोक्रेटिस और उसके स्कूल के अन्य सदस्यों ने 50 से अधिक पुस्तकें दवाइयों पर लिखीं. इन पुस्तकों में बीमारियों के कुछ वर्णन बहुत स्पष्ट और ठीक हैं, उनके लेखन में, जिसमें से कुछ वास्तव में उनके घनिष्ट साथियों द्वारा लिखा गया था. यह महत्वपूर्ण सिद्धांत मिलता है कि प्रत्येक बीमारी किसी न किसी प्राकृतिक नियम से उसी प्रकार संबंधित है जैसे संसार की अन्य सभी वस्तुएं. अतः हर बीमारी के बारे में बहुत ही गहराई और बारीकी से जानकारी पानी चाहिए, उसका इलाज करने में भी पूरी सावधानी बरतनी जरूरी है.
आधुनिक डॉक्टर और शरीरशास्त्री हिपोक्रेटिस की बहुत सी बातों को अब नहीं मानते. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि मानव शरीर में होने वाली बीमारियों का इलाज करने की दिशा में हिपोक्रेटिस पहले चिकित्सक थे जिन्होंने तर्क संगत और वैज्ञानिक पद्धति अपनाई, पश्चिमी देशों की एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति हिपोक्रेट की सदा ऋणी रहेगी, हिपोक्रेटिस से पहले भारत ही एक ऐसा देश था जहां आयुर्वेद में बताई वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति का उपयोग किया जाता था.