भारत में झीलों का निर्माण विभिन्न क्रियाओं द्वारा हुआ है। भूगर्भिक क्रिया द्वारा कश्मीर की वुलर झील बनी है जबकि महाराष्ट्र की लोनार झील (बुल्डाणा) ज्वालामुखी क्रिया से बनी है। कुमायूं हिमालय की राकसताल, भीमताल, नौकुचिया ताल, नैनीताल आदि झीलें हिमानी निर्मित हैं पीर पंजाल में हिमोढ झीलें मिलती हैं। पवन निर्मित झीलों (प्लाया) में राजस्थान की सांभर, डीडवाना, पचपदरा, फलोदी,कोछोर, रैवासा, लूणकरणसर प्रमुख है। नदी विसर्प से बनी झीलें (बील) मध्य एवं निचली गंगा घाटी में मिलती हैं। नदियों के मुहानों पर लैगून झीलें मिलती हैं। इनमें ओडिशा की चिल्का (पुरी में), तमिलनाडु की पुलिकट, आन्ध्र प्रदेश की कोलेरू प्रमुख है। अलकनंदा क्षेत्र की गोहना झील भूस्खलन से निर्मित है।
जलप्रपात- भारत के दक्षिणी प्रायद्वीपीय भाग में जल प्रपात अधिक मिलते हैं। शरावती नदी का जोग या गरसोपा प्रपात (253 मी.) महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर बना है। शिवसमुद्रम (98 मी.) प्रपात कावरी पर स्थित है। पायकारा नदी पर पायकारा प्रपात है जो नीलगिरि क्षेत्र में है। टोंस नदी पर बिहार प्रपात विंध्याचल श्रेणी में स्थित है। गोकक प्रपात गोकक नदी (बेलगाम) पर, पेन्ना प्रपात (महाबलेश्वर), चूलिया प्रपात (चम्बल पर) नर्मदा का धुआंधार प्रपात, मंधार व पुनासा प्रपात (जबलपुर) आदि अन्य प्रमुख प्रपात हैं। भारत का सबसे ऊंचा जल प्रपात जोग (गरसोप्पा) प्रपात है। इनके अलावा कावेरी नदी पर मगन चुक्की व भार चुक्की प्रपात प्रमुख हैं।
तटीय मैदान एवं द्वीप
पश्चिमी तटीय मैदान
यह पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के तट के बीच गुजरात से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। गुजरात के कुछ भाग के अतिरिक्त पूरा मैदान संकरा है, जिसकी औसत चौड़ाई 64 किलोमीटर है। मुंबई से गोआ तक इस प्रदेश को कोंकण तट, मध्य भाग को कन्नड तथा दक्षिणी भाग को मालाबार तट कहते हैं। कोंकण का मैदान 50-80 किमी. चौड़ा है। मालाबार के तट पर बालू के अनेक टीलें तथा लैगून मिलते हैं।
यह भी पढ़ें: जानिए भारत के कृषि उत्पादन के बारे में
पूर्वी तटीय मैदान
यह पूर्वी घाट तथा बंगाल की खाड़ी के बीच उत्तर में गंगा के मुहाने से दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। तमिलनाडु में यह मैदान चौड़ा है और यहां इसकी चौड़ाई 100 से 200 किलोमीटर है। गोदावरी डेल्टा के उत्तर की ओर यह तटीय मैदान संकरा होता जाता है और कहीं कहीं तो इसकी चौड़ाई 32 किलोमीटर से भी कम रह जाती है। यह मैदान महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टाओं द्वारा निर्मित होने के कारण अत्यधिक उपजाऊ है। इसे महानदी एवं कृष्णा नदियों के बीच उत्तरी सरकार तथा कृष्णा एवं कावेरी नदियों के बीच कोरोमण्डल अथवा कर्नाटक तट कहते हैं। इस मैदान के तट पर कई लैगून झीलें पाई जाती हैं जिनमें चिल्का झील तथा पुलीकट झील प्रसिद्ध है।
भारत के अपवाह तंत्र
भारत के अपवाह तंत्र को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा जा सकता है
1. हिमालय की नदियां
2. प्रायद्वीपीय नदियाँ
हिमालय की नदियां
हिमालय की नदियों में तीन अपवाह तंत्र हैं:
सिंधु अपवाह तंत्र
सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत में 5180 मीटर की ऊंचाई पर मानसरोवर झील के समीप है। अपने स्रोत से पश्चिम, उत्तर-पश्चिम दिशा में लगभग 320 किलोमीटर की दूरी तक बहने के बाद यह नदी भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है। इसकी प्रसिद्ध सहायक नदियां सतलज, व्यास, रावी, चिनाब तथा झेलम हैं। इनका संयुक्त प्रवाह मेथनकोट के निकट सिन्धु नदी में मिल जाता है। सिंधु नदी की * कुल लंबाई 2,880 किलोमीटर है। इसका जलग्रहण लगभग 11.65,000 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 3,21,290 किलोमीटर भारत में है और वह 41,950 लाख घन मीटर अर्थात 20 प्रतिशत जल का प्रयोग कर सकता है। सिंधु अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियां इस प्रकार हैं।
झेलम
यह कश्मीर की घाटी के दक्षिण-पूर्व में स्थित वीरिंग के निकट झरने से निकलती है। कश्मीर में बहने के पश्चात यह पाकिस्तान में प्रवेश करती है और संग के निकट चिनाब नदी में मिल जाती है।
चेनाब (हिमाचल प्रदेश में चन्द्रभागा)
चन्दू तथा भागा इसके उद्गम स्थल है जो लाल के बारा लाचा दरें के दोनों ओर स्थित है। यह पीर पंजाल के समानान्तर कुछ दूरी तक पश्चिम दिशा में बहती है और किश्तवार के निकट पीर पंजाल में गहरा गॉर्ज बनाती है।
रावी
यह नदी रोहतांग दर्रे के निकटवर्ती भाग से निकलती है। धौलाधार की उत्तरी तथा पीर पंजाल की दक्षिणी ढलानों से गुजरती हुई यह बहुत सी संकरी घाटी बनाती है। पाकिस्तान में मुल्तान के निकट चिनाब नदी के साथ मिलने तक यह 720 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
व्यास
यह नदी हिमालय के रोहतांग दर्रे में स्थित व्यास कुण्ड से निकलती है। इसकी कुल लंबाई 615 किलोमीटर है।
सतलुज
सतलुज नदी तिब्बत में कैलाश पर्वत के दक्षिण में मौजूद मानसरोवर झील के नजदीक राक्षस तलाब सेे निकली है।
यह समुद्र तल से 4,630 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। राक्षसताल से निकल कर यह नदी पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती है और शिपकी घरों के निकट हिमालय में संकरी घाटी बनाकर भारत में प्रवेश करती है। भाखड़ा-नांगल बांध इसी नदी पर बना हुआ है। कुल 1440 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यह हरिके पत्तन नामक स्थान पर व्यास नदी में मिलती है।
गंगा अपवाह तंत्र
गंगा नदी उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में 6,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है। इसका नाम गंगा तब पड़ता है जब अलकनंदा एवं भागीरथी नदी देवप्रयाग इससे मिलती है। प्रयागराज के निकट इसमें यमुना नदी आकर मिलती है। फरक्का जिले के बाद गंगा नदी की प्रमुख धारा पूर्व एवं दक्षिण पूर्व की ओर होती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है वहां से पद्मा के नाम से पुकारा जाता है। यहां से यह नदी कई धाराओं में बंटकर डेल्टा का निर्माण करती है और बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। इसकी कुल लंबाई 2,525 किलोमीटर है। अकेले भारत में गंगा का अपवाह क्षेत्र लगभग 8,61,404 वर्ग किलोमीटर है।
यमुना
यमुना नदी गंगा की प्रमुख सहायक नदी है। यह यमुनोत्री नामक हिमनद से 3,985 मीटर की ऊंचाई से निकलती है और ताजेवाला नामक स्थान पर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। गंगा नदी के लगभग समानांतर बहने के बाद यह नदी इलाहाबाद के निकट (प्रयाग में) गंगा में जा मिलती है। इसकी कुल लंबाई 1375 किलोमीटर है। दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत से निकलकर चम्बल, बेतवा, सिंध तथा केन नदियां उसमें आकर मिलती हैं।
घाघरा
तिब्बत के पठार में स्थित झपचाचुंग हिमनदी से निकल कर नेपाल में बहने के बाद यह भारत में प्रवेश करती है। इसके बाद यह अपनी सहायक नदी शारदा का जल लेकर छपरा बिहार के निकट गंगा में मिलती है। गंडक- यह नदी नेपाल-चीन सीमा के निकटवर्ती स्थान से निकल कर मध्य नेपाल में बहने के बाद बिहार के चंपारण, जिले में प्रवेश कर सोनपुर के निकट गंगा में मिलती है।
कोसी
यह नदी नेपाल से बिहार में प्रवेश करती है। कई धाराओं में बहने के बाद यह कारगिल, नामक स्थान पर गंगा से आ मिलती है। यह नदी मार्ग परिवर्तन तथा आकस्मिक बाढ़ के लिए कुख्यात है। यह बिहार में धन जन को अपार क्षति पहुंचाती है। यही कारण है कि इसे बिहार का शोक कहा जाता है।
ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र
यह चेमायुंगडुंग हिमानी से निकलती है। यह मानसरोवर झील के दक्षिण पूर्व में लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर है। तिब्बत में यह नदी लगभग 1250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हिमालय के उत्तर में उसके समानांतर बहती है। तिब्बत में से सांगपो कहते है।
नामचा बरवा के निकट यह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है और दिहांग के नाम से अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। असम घाटी में प्रवेश के बाद इसे ब्रह्मपुत्र कहते हैं। बांग्लादेश में यह गंगा के साथ मिल कर गंगा-ब्रह्मपुत्र नामक विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है। डेल्टाई भाग में गंगा-ब्रह्मपुत्र की मुख्यधारा कई धाराओं में विभक्त हो जाती है। इनमें मघुमती, पदमा, सरस्वती, हुगली आदि प्रमुख हैं। इसकी कुल लंबाई 2900 किलोमीटर है। इसके दाहिने किनारे से सुबन्सीरी, भारेली, तथा बनास तथा बाएं किनारे से दिबांग, लोहित, बुरी, दिहिंग, धनसिरी तथा कपिली मिलती है।
यह भी पढ़ें: जानिए छत्तीसगढ़ के बारे में
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
महानदी
यह नदी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर अमरकंटक से निकलती है और ओडिशा से बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है। इसके 1,41,600 वर्ग किलोमीटर के प्रवाह क्षेत्र में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिशा तथा महाराष्ट्र के प्रदेश सम्मिलित हैं। इस नदी की कुल लंबाई 857 किलोमीटर है। इस नदी पर हीराकुण्ड बांध बना हुआ है।
गोदावरी
यह प्रायद्वीपीय पठार की सबसे बड़ी नदी है। गोदावरी नदी की कुल लंबाई 1,465 किलोमीटर है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबक स्थान से इसका उद्गम हुआ है और यह नदी आंध्र प्रदेश से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा मिल जाती है। इसका कुल अपवाह क्षेत्र 3,12,812 वर्ग किलोमीटर है जिसका 50 प्रतिशत भाग अकेले महाराष्ट्र में है। शेष अपवाह क्षेत्र कर्नाटक, ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश में है। अपने विशाल आकार तथा विस्तार के कारण यह प्रायः बूढ़ी गंगा तथा दक्षिण गंगा के नाम से भी जानी जाती है। प्रवदा, मनप्रा, वैन गंगा, वर्धा, प्रणहिता, इन्द्रावती, मानेर तथा सबासी इसको
प्रमुख सहायक नदियां हैं।
कृष्णा
इसकी उत्पत्ति महाबलेश्वर के निकट एक झरने से होती है। यह नदी अपने उद्गम से मुहाने तक महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आंध्रप्रदेश में 1400 किलोमीटर की यात्रा करती है। इसका कुल अपवहन क्षेत्र 2,50,948 वर्ग किलोमीटर है। कोयना, भीमा, तुंगभद्रा, घाट प्रभा आदि इसकी प्रसिद्ध सहायक नदिया हैं।
कावेरी
यह नदी पश्चमी घाट के ब्रह्मगिरि से निकलती है और कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्य में प्रवाहित होती हुई कावेरीपत्तनम के निकट बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। इसकी कुल लंबाई 805 किलोमीटर है। इसका अपवाह क्षेत्र लगभग 87,900 वर्ग किलोमीटर है जो केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों में फैला हुआ है।
अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
नर्मदा
यह मध्य प्रदेश की विंध्यन श्रेणी में स्थित अमरकंटक से निकलकर भडौंच के निकट अरब सागर में जा गिरती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 1300 किलोमीटर तथा इसका अपवाह क्षेत्र 98,796 वर्ग किलोमीटर है। इसके उत्तर में विन्ध्याचल तथा दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत स्थित है । इस नदी के रास्ते में मध्यप्रदेश में संगमरमर के शैल आते हैं जिन पर बहती हुई नर्मदा नदी बहुत ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है। नर्मदा की यह विशेषता है कि इसमें सहायक नदियों का अभाव है।
ताप्ती
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में महादेव की पहाड़ियों के दक्षिण में ताप्ती नदी निकलती है। यहां से सतपुड़ के दक्षिण में स्थित दरार घाटी में नर्मदा के समानांतर पश्चिमी दिशा में प्रभाहीत होती हुई सूरत के निकट खम्भात की खाड़ी में गिरती है। ताप्ती नदी की कुल लंबाई 724 किलोमीटर है।