आरबीआई ने 2000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने का फैसला लिया है. इस फैसले के बाद में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की तरफ से बड़ा बयान जारी किया गया है. अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के 2,000 रुपये के नोटों को चलन से वापस लेने के फैसले का अर्थव्यवस्था पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ेगा.
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा है कि 2000 का नोट वापस मंगाने के भारतीय रिजर्व बैंक के फैसले से अर्थव्यवस्था पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि ऐसे वापस हुए नोटों के स्थान पर उसी कीमत में कम मूल्यवर्ग के नोट जारी कर दिए जाएंगे. पनगढ़िया ने कहा कि इस कदम के पीछे संभावित मकसद अवैध धन की आवाजाही को और मुश्किल बनाना है.
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा है कि हम इसका अर्थव्यवस्था पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं देखेंगे. 2,000 के नोट की कितनी भी राशि को बराबर कीमत में कम मूल्यवर्ग के नोटों से बदल दिया जाएगा या जमा कर दिया जाएगा. इसलिए धन प्रवाह पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.
पनगढ़िया ने कहा कि 2,000 रुपये के नोट वर्तमान में जनता के हाथों में कुल नकदी का केवल 10.8 प्रतिशत हैं और इसमें से भी ज्यादातर राशि का उपयोग संभवत: अवैध लेनदेन में होता है. आरबीआई ने को 2,000 रुपये के नोट को चलन से बाहर करने की घोषणा की थी. इस मूल्य के नोट बैंकों में जाकर 30 सितंबर तक जमा या बदले जा सकेंगे. आरबीआई ने शाम को जारी एक बयान में कहा कि अभी चलन में मौजूद 2,000 रुपये के नोट 30 सितंबर तक वैध मुद्रा बने रहेंगे.
यह पूछे जाने पर कि क्या 1,000 रुपये के नोटों की जरूरत है…? पनगढ़िया ने कहा है कि अभी तक, मुझे 1,000 रुपये के नोट जारी करने की आवश्यकता नहीं दिख रही है क्योंकि नागरिक 500 रुपये या उससे कम मूल्यवर्ग के नोटों में लेन-देन करने के आदी हो गए हैं.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रातों-रात 1,000 रुपये और 500 रुपये के उच्च मूल्य के नोटों को चलन से बाहर करने के बाद आरबीआई ने नवंबर 2016 में 2,000 रुपये के नोटों की छपाई शुरू की थी. उन्होंने कहा कि नवंबर 2016 की नोटबंदी का एक सबक यह था कि काले धन का पता लगाना अविश्वसनीय रूप से कठिन है.